रामराय, विजयनगर साम्राज्य
रामराय को राजा रामराय के नाम से जाना जाता था जो दक्षिण भारत के महानतम शासकों में से एक थे। वह 1565 ई में तालीकोटा (रक्षसी तांगड़ी) के निर्णायक युद्ध से पहले शक्तिशाली विजयनगर साम्राज्य के अंतिम सम्राट थे। राम राय कृष्णदेव राय के दामाद थे और उनकी मृत्यु के बाद इस साम्राज्य की राजनीति में कदम रखा। कृष्णदेव के सौतेले भाई अच्युत राय की मृत्यु के बाद राम राय ने शासन शुरू किया। हालांकि शासक सदाशिव राय थे लेकिन साम्राज्य की वास्तविक शक्ति रामराय के हाथ में थी। रामा राय ने विजयनगर की प्रतिष्ठा को पुनर्जीवित करने के लिए कई युद्ध किए। वो इस महान साम्राज्य को श्रेष्ठ रखने में भी सफल रहे। स्वभाव से एक राजनयिक वह पुर्तगाल के नाविकों के साथ एक राजनीतिक और वाणिज्यिक संधि के लिए सफल रहे। इसके बाद रमा राय ने उनके खिलाफ गंभीर कार्रवाई की और पुर्तगालियों के खिलाफ दो सफल अभियान भेजे। ऐसा माना जाता है कि राम राय ने दक्कन (गोलकुंडा, बरार, बीदर, अहमदनगर और बीजापुर) के पांच सुल्तानों के मामलों में हस्तक्षेप किया था। उसने एक या दूसरे से जुड़कर और उन्हें कमजोर कर दिया, लेकिन यह नीति लंबे समय तक सफल नहीं हुई। सुल्तान अंततः राम राय की बढ़ती ताकत से डर गए और रक्षसी तांगड़ी की लड़ाई में विजयनगर सेना से मिले और इस युद्ध में उन्हें हरा दिया। यह दक्षिण भारतीय इतिहास के सबसे शानदार शासनकाल में से एक का अंत हुआ।
तालीकोटा का युद्ध 1565 में विजयनगर और दक्कन सल्तनत के बीच हुआ था। इस युद्ध को ‘राक्षसी तंगड़ी का युद्ध’ और ‘बन्नीहट्टी का युद्ध’ के नाम से भी जाना जाता है। दक्कन महासंघ के नेता ‘अली आदिलशाह’ ने रामराय से रायचूर एवं ‘मुद्गल’ के क़िलो को वापस माँगा। रामराय द्वारा माँग ठुकराये जाने पर दक्षिण के सुल्तानों की संयुक्त सेना ‘राक्षसी-तंगड़ी’ की ओर बड़ी, जहाँ पर 25 जनवरी, 1565 को रामराय एवं संयुक्त मोर्चे की सेना में भंयकर युद्ध प्रारम्भ हुआ। इस युद्ध में रामराय की हत्या हुसैन शाह ने की थी, जो इन्हीं का मंत्री था। उसने अपने धर्म के कारण रामराय को धोखा दिया। राजा रामराय की पराजय व उसकी मौत के बाद विजयनगर शहर को निर्मतापूर्वक लूटा गया। युद्ध के परिणामों के प्रतिकूल रहने पर भी विजयनगर साम्राज्य लगभग सौ वर्ष तक जीवित रहा। तिरुमल के सहयोग से सदाशिव ने पेनुकोंडा को राजधानी बनाकर शासन करना प्रारम्भ किया।