मौर्यकालीन प्रशासन

मौर्य काल में राजधानी पाटलिपुत्र में स्थित थी। प्रशासन को सुचारू रूप से चलने के लिए साम्राज्य को चार प्रमुख भागों में बांटा गया था। पूर्वी क्षेत्र की राजधानी तौसाली थी। उत्तरी क्षेत्र की राजधानी तक्षशिला थी जबकि पश्चिमी उज्जैन में स्थित थी। दक्षिणी क्षेत्र की राजधानी सुवर्णगिरी थी। मौर्य प्रशासन की जानकारी का मुख्य

मौर्यकालीन कला और स्थापत्य

मौर्यकाल में विभिन्न शासकों ने कई नगरों के साथ-साथ स्तूपों, गुफाओं तथा स्तंभों का निर्माण करवाया। इस दौरान अशोक ने स्थापत्य कला में काफी महत्वपूर्ण योगदान दिया, उसके द्वारा निर्मित किये गए कई प्रतीक व चिह्न वर्तमान में भारत के राष्ट्रीय प्रतीक हैं। सारनाथ के शीर्ष स्तम्भ पर चार सिंह पीठ सटाए बैठे हैं। यह

मौर्यकालीन धर्म

धार्मिक दृष्टि से मौर्य काल में काफी महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। इस दौरान बौद्ध धर्म का काफी विस्तार हुआ और उसे कई शासकों का संरक्षण भी प्राप्त हुआ। मौर्यकाल में वैदिक धर्म भी प्रचलित था। इस दौरान वैदिक धर्म में कर्मकांड काफी बढ़ गए थे। मौर्यकाल में यज्ञ इत्यादि कर्मकांड काफी प्रचलित थे। मौर्य साम्राज्य के

मौर्यकालीन सामाजिक स्थिति

मौर्यकाल में समाज व्यवसाय के आधार पर 7 श्रेणियों में बंटा हुआ था, यह साथ श्रेणियां दार्शनिक, किसान, शिकारी एवं पशुपालक, शिल्पी एवं कारीगर, योद्धा, निरीक्षक एवं गुप्तचर तथा अमात्य और सभासद थीं। इस दौरान अधिकतर लोगों का व्यवसाय कृषि था। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में समाज की चारों वर्गों का उल्लेख ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और

मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था

मौर्यकाल की अर्थव्यवस्था कृषि, पशुपालन और इससे सम्बंधित गतिविधियों पर आधारित थी। इस दौरान व्यापार भी किया जाता था। भूमि पर राजा का अधिकार होता था, इस प्रकार की भूमि को सीता कहा जाता था। इस भूमि पर कृषि कार्य करने के लिए दास अथवा कर्मकारों को नियुक्त किया जाता था । कई क्षेत्रों में