नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट की टिपण्णी : मुख्य बिंदु

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि, “नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के पास स्व-प्रेरणा शक्तियां (suo moto powers) हैं और यह पर्यावरण के मुद्दों को अपनी इच्छा पर सुन सकता है”।
मुख्य बिंदु
- यह आदेश तब आया जब केंद्र सरकार ने कहा कि NGT के पास पर्यावरणीय मामलों की सुनवाई करने का अधिकार नहीं है।
- कोर्ट ने यह भी कहा कि, किसी भी अन्य व्याख्या को धारण करना जनता की भलाई के खिलाफ होगा और पर्यावरण निगरानी को अप्रभावी और दंतहीन बना देगा।
- यह निर्णय राष्ट्र और लोगों की भलाई के लिए महत्वपूर्ण है।
- यह भविष्य के बच्चों और उसके बाद की पीढ़ियों के लिए एक बेहतर पर्यावरणीय विरासत को पीछे छोड़ने के लिए पर्यावरणीय क्षति और परिणामी जलवायु परिवर्तन से संबंधित सभी मुद्दों को संबोधित करने के लिए लचीला तंत्र लाएगा।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT)
NGT की स्थापना 18 अक्टूबर, 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत की गई थी। इसकी स्थापना पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन के अलावा वनों के संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटान के लिए की गई थी।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010
यह संसद का एक अधिनियम है जो पर्यावरणीय मुद्दों से संबंधित मामलों के शीघ्र निपटान के लिए एक विशेष न्यायाधिकरण के निर्माण की ओर ले जाता है। यह अनुच्छेद 21 के संवैधानिक प्रावधान से प्रेरित था।
ट्रिब्यूनल का कार्य
इस ट्रिब्यूनल का पर्यावरणीय मामलों में एक समर्पित क्षेत्राधिकार है। इस प्रकार, यह त्वरित पर्यावरणीय न्याय प्रदान करता है और उच्च न्यायालयों के बोझ को कम करने में मदद करता है। इसे 6 महीने के भीतर आवेदनों या अपीलों के निपटान के लिए प्रयास करना अनिवार्य है।
Categories: पर्यावरण एवं पारिस्थिकी करेंट अफेयर्स
Tags:Current Affairs in Hindi , Hindi Current Affairs , Hindi News , NGT , नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल , राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010 , हिंदी करेंट अफेयर्स