औरंगजेब, मुगल शासक

औरंगजेब शाहजहाँ का पुत्र था , अपने भाइयों से उत्तराधिकार के कई युद्ध लड़ने के बाद वह मुग़ल वंश का शासक बना था। औरंगजेब का जन्म 3 नवम्बर, 1618 ईसवी को हुआ था। आरम्भ में उसने कई विद्रोनों का दमन किया। उसे दो बार दक्षिण का सूबेदार भी नियुक्त किया गया था। बाद में उसे गुजरात का सूबेदार भी नियुक्त किया गया था। सामूगढ़ की विजय के बाद औरंगजेब ने आगरा पर अधिकार कर लिया था।
औरंगजेब ने 31 जुलाई, 1668 ईसवी को सत्ता संभाली थी। उसने अबुल मुज़फ्फर आलमगिर पादशाह गाजी की उपाधि धारण की थी। खजवा और देवराइ युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद औरंगजेब ने 15 जून, 1659 ईसवी को दिल्ली में राज्याभिषेक किया था।
साम्राज्य का विस्तार
कूच-बिहार के शासकों और अहोमों में संघर्ष होते रहते थे। कूच-बिहार के शासकों ने सहायता के लिए मुगलों से सहायता मांगी। 1661 ईसवी में बंगाल के सूबेदार मीर जमुना के नेतृत्व में असम के अहोमों पर आक्रमण किया गया। 1663 ईसवी में मुगलों को इसमें सफलता प्राप्त हुई और अहोम संधि के लिए राज़ी हुए। मीर जुमला की मृत्यु के बाद अहोमों ने अपने क्षेत्रों पर पुनः नियंत्रण स्थापित कर लिया। मीर जुमला की मृत्यु के बाद शाइस्ता खां को बंगाल का गवर्नर नियुक्त गया गया, उसने पुर्तगालियों को अपने पक्ष में कर लिया। उसने सोनदीप और चटगाँव पर अधिकार स्थापित कर लिया था।
दक्कन में औरंगजेब को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 1685 ईसवी में मुगलों ने बीजापुर पर आक्रमण किया था। यह अभियान सफल रहा था। सुल्तान सिकंदर आदिल शाह ने 12 सितम्बर, 1686 ईसवी को समर्पण किया था। 1686 ईसवी में शाह आलम के नेतृत्व में मुग़ल सेना ने गोलकुंडा पर आक्रमण किया था। अक्टूबर, 1687 ईसवी में गोलकुंडा मुग़ल साम्राज्य का भाग बन गया।
दक्कन के अतिरिक्त मराठा शासक भी औरंगजेब के लिए बड़ी चुनौती थे। वह दक्कन शासकों की सहायता से मराठा शासकों पर नियंत्रण स्थापित करना चाहता था। औरंगजेब को महान मराठा शासक शिवाजी का सामना करना पड़ा। शिवाजी और मुगलों के बीच पहला संघर्ष 1656 ईसवी में हुआ था। शिवाजी ने अहमदनगर और जुन्नार किले पर आक्रमण किया था। वर्ष 1663 ईसवी में शिवाजी ने दक्षिण के मुग़ल सूबेदार शाइस्ता खां को पराजित किया था।
महाराष्ट्र में शिवाजी एक शक्तिशाली शासक के रूप में उभरे। शिवाजी को रोकने के लिए औरंगजेब ने 1665 ईसवी में जयसिंह को भेजा। जयसिंह और शिवाजी के बीच जून, 1665 ईसवी में पुरंदर की संधि हुई। इस संधि के तहत शिवाजी ने 4 लाख हूण वाले 23 किले मुगलों को सौंप दिया। शिवाजी को जयपुर भवन में कैद किया गया था, परन्तु वे वहां से भाग निकलने में सफल रहे। वर्ष 1689 ईसवी में शम्भाजी की हत्या कर दी गयी थी। मराठों से संघर्ष औरंगजेब के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ। इस संघर्ष में उलझे हुए 1707 ईसवी में औरंगजेब की मृत्यु औरंगाबाद में हो गयी।

औरंगजेब के शासनकाल में विद्रोह

बुंदेला विद्रोह, 1661 ई० ओरछा के छत्रसाल ने शिवाजी से प्रेरणा ली और विद्रोह कर दिया, 1707 ईसवी में वह बुंदलखंड का स्वतंत्र शासक बना।
अफगान विद्रोह, 1667 ई० इस विद्रोह का आरंभ रोशनाई नामक सम्प्रदाय ने किया था। अफरीदी नेता अकमल खां ने स्वयं को शासक घोषित किया और अपने नाम से सिक्के जारी करवाए।
जाट विद्रोह, 1669 ई० यह किसानो से सम्बंधित विद्रोह था,अंत में मथुरा ने निकट स्वतंत्र राज्य की स्थापना की गयी।
सतनामी विद्रोह, 1672 ई० इस विद्रोह की पृष्ठभूमि धार्मिक थी। इस विद्रोह की शुरुआत एक सतनामी और स्थानीय मुग़ल सरदार के झगडे से हुई थी।
सिख विद्रोह ,1675 ई० यह विद्रोह धार्मिक पृष्ठभूमि पर आधारित था।
अकबर का विद्रोह, 1681 ई० 11 जनवरी, 1681 ईसवी को अकबर ने स्वयं को बादशाह घोषित किया था।

औरंगजेब की धार्मिक नीति
औरंगजेब ने धर्मान्धता की नीति का अनुसरण किया। वह शरियत का पालन करने के प्रयास करता था। उसने गैर मुस्लिमों पर जजिया कर लगा दिया था। इसके अतिरिक्त उसने मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया और नए मंदिरों के निर्माण पर रोक लगा दी। 1669 के मुहतसिब के अनुसार उसने हिन्दू मंदिरों और पाठशालाओं को नष्ट करने का आदेश दिया था। इस कड़ी में कई हिन्दू मंदिरों को तोडा गया, इनमे काशी विश्वनाथ मंदिर, मथुरा का केशवराय मंदिर तथा गुजरात का सोमनाथ मंदिर प्रमुख हैं। इन सब गतिविधियों से औरंगजेब के धर्मांध होने का प्रमाण मिलता है।
इसके अतिरिक्त औरंगजेब ने सिजदे पर रोक लगायी थी। उसने सिक्कों पर कलमा खुदवाने पर भी रोक लगा दी थी। शरियत का पालन करने के लिए उसने सभी सूबों में मुहतसब की नियुक्ति की। 1669 ईसवी में उसने दरबार में संगीत पर रोक लगायी। 1668 ईसवी में उसने होली को सार्वजानिक रूप से मनाने पर रोक लगायी।
अन्य राज्यों के प्रति नीति
औरंगजेब ने कूटनीति का उपयोग करते हुए राजपूतों का सहयोग प्राप्त किया। औरंगजेब के प्रमुख सहयोगी आमेर का शासक जयसिंह, मारवाड़ शासक जसवंत सिंह तथा मेवाड़ शासक राजसिंह थे। 1668 ईसवी में शिवाजी के कैद से बच निकलने के कार्य औरंगजेब को जयसिंह और जसवंत सिंह पर संदेह हुआ। उसने जयसिंह को दक्कन के सरसूबेदार के पद से ख़ारिज कर दिया था। इसके बाद उसने राजपूतों को पूर्वोत्तर और पश्चिमोत्तर क्षेत्र में नियुक्त किया।
वर्ष 1678 ईसवी में जसवंत की मृत्यु के बाद मारवाड़ में उत्तराधिकार की समस्या उत्पन्न हो गयी थी। कुछ समय के बाद औरंगजेब ने मुग़ल मारवाड़ को मुग़ल सल्तनत में मिलाने का निर्णय लिया। औरंगजेब ने मारवाड़ की राजधानी जोधपुर पर अधिकार कर लिया। उसने जोधपुर के मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया था। उसने जजिया कर पुनः लागु कर दिया। औरंगजेब ने जसवंत सिंह के सिंहासन को 56 लाख रुपये में नागौर को बेच दिया था।
औरंगजेब ने मेवाड़ के राणा को मांडल, बिदनूर और मांडलगढ़ के परगने दिया थे। बाद में औरंगजेब ने जजिया कर लागू कर दिया था, इससे मेवाड़ के मुगलों के सम्बन्ध बिगड़ गए थे। औरंगजेब की राजपूत नीति काफी असफल रही, उसने अपने सहयोगी राजपूतों के साथ बाद में उचित व्यवहार नहीं किया। उसने अपने सहयोगी राजाओं पर ही जजिया कर लगाया तथा मारवाड़ में मंदिरों को तुडवाने का आदेश दिया। इससे औरंगजेब में राजनीतिक दूरदर्शिता की कमी का पता चलता है।

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