कडप्पा जिले का इतिहास

आंध्र प्रदेश का कडप्पा जिला एक समृद्ध इतिहास वाला क्षेत्र है। इसका इतिहास दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व का है, और पुरातत्व मौर्य साम्राज्य और सातवाहन राजवंश से शुरू होता है। यह पल्लव वंश, चालुक्य वंश और चोल वंश जैसे कई राजवंशों के लिए युद्ध का स्थल रहा है, जिन्होंने दक्षिण भारत पर शासन स्थापित करने के लिए युद्ध किए थे। पल्लव वंश के राजा ने कडप्पा जिले के उत्तरी क्षेत्र में अधिकार प्राप्त कर लिया था। उन्होंने 5वीं शताब्दी के दौरान एक निश्चित अवधि के लिए शासन किया। बाद में चोलों ने पल्लवों को हराया और उनका शासन 8वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक चला। इसके बाद बनास वंश ने अपना अधिकार स्थापित किया। बनास के बाद कडप्पा राष्ट्रकूट वंश के राजाओं के अधीन आ गया। इस समय के लोकप्रिय शासक राजा कृष्ण III थे। राजा कृष्ण III की मृत्यु के साथ इस राजवंश की शक्ति कम हो गयी। चोल वंश के सामंत तेलुगु चोल ने पूरे कडप्पा जिले पर शासन किया। पांडय के आक्रमण के कारण वे शक्तिहीन हो गए। 13 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जिला अंबादेव के अधिकार में आ गया, जिन्होंने अस्थायी रूप से काकतीय राज्य पर कब्जा कर लिया था और कडप्पा से 15 किलोमीटर दूर वल्लूर से शासन किया था। अंबादेव की मृत्यु के बाद काकतीय राजा प्रतापरुद्र सिंहासन पर बैठे और 14 वीं शताब्दी के दौरान वारंगल को राजधानी बनाकर जिले पर शासन किया। 1309 ईस्वी में खिलजी सम्राट अला-उद-दीन खिलजी के शासनकाल में मुसलमानों द्वारा दक्कन पर आक्रमण किया गया और प्रताप रुद्र की हार हुई। उन्हें कैद करके दिल्ली ले जाया गया। राजधानी वारंगल पर अलाउद्दीन का कब्जा हो गया। 1336 ई. में हरिहर और बुक्का ने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की। 1344 ईस्वी के दौरान वारंगल, कृष्ण विजय नगरम राजा और मैसूर के होयसल राजा के एक हिंदू संघ ने मुस्लिम शासकों को परास्त करके वारंगल से बाहर निकाल दिया। 1740 ई. में मराठों ने आक्रमण किया और कुरनूल और कडप्पा के नवाब को हराया। हैदर अली ने मराठों से गुररामकोंडा और कडप्पा का अधिकार प्राप्त किया और कडप्पा जिले में अपने बहनोई मीर साहब को नियुक्त किया। बाद में इस क्षेत्र को निजाम द्वारा अंग्रेजों को सौंप दिया गया। अंत में प्रथम जिला कलेक्टर मेजर मुनरो ने प्रशासन किया।

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