केवल केंद्र सरकार ही सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदाय की पहचान कर सकती है : सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा कि केवल राष्ट्रपति सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदाय (Socially and Economically Backward Community) की घोषणा करने में निर्णय ले सकते हैं। 102वें संवैधानिक संशोधन को बरकरार रखते हुए यह फैसला सुनाया गया है।

मुख्य बिंदु

शीर्ष अदालत ने कहा कि 102वें संवैधानिक संशोधन ने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को नामित करने के लिए राज्य सरकारों की शक्तियों को छीन लिया है।

मामला क्या है?

राज्य सरकारें समुदायों को कोटा का लाभ प्रदान करने के लिए सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की सूची में विस्तार कर रही हैं।

इन्द्रा साहनी केस (Indra Sawhney Case)

राज्य सरकार के पास पिछड़े वर्ग की पहचान करने की पूरी शक्तियां हैं। साहनी केस के फैसले ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (National Backward Classes Commission) और राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (State Backward Classes Commission) की नियुक्ति का निर्देश दिया था। इस प्रकार, 102वां संवैधानिक संशोधन लाया गया और इन आयोगों की स्थापना की गई।

102वां  संवैधानिक संशोधन

102वें संवैधानिक संशोधन ने अनुच्छेद 338 B और अनुच्छेद 342 A का निर्माण किया, अनुच्छेद 338 B राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की संरचना, शक्तियों और कर्तव्यों से संबंधित है और अनुच्छेद 342 A एक विशेष जाति को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े के रूप अधिसूचित करने के लिए राष्ट्रपति की शक्ति के साथ संबंधित है।

संवैधानिक प्रावधान

अनुच्छेद 366 और अनुच्छेद 342 के अनुसार केवल राष्ट्रपति ही सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदाय की पहचान करेंगे।

यह मुद्दा सुर्ख़ियों में क्यों है?

महाराष्ट्र राज्य सरकार ने मराठा समुदाय को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग घोषित किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में मराठा आरक्षण को असंवैधानिक घोषित कर दिया है।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 2018 को बरकरार रखा था। इसे विभिन्न याचिकाओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

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