गारो जनजाति
गारो खुद को एक सामान्य पूर्वजों के वंशज के रूप में मानते हैं। गारो जनजाति मुख्य रूप से मेघालय, नागालैंड और असम के जिलों जैसे कार्बी आंगलोंग, गोलपारा और कामरूप में स्थित हैं। वे कूच बिहार, जलपाईगुड़ी, बर्धमान और पश्चिम बंगाल के दिनाजपुर जिलों में भी बिखरे हुए हैं।
गारो जनजतियों की भाषा
गारो भाषा में कई विभाजन हैं। गारो भाषाओं के उप समूहों को चिबोक, मेगाम, मटैबेंग, रूगा, अचिक, गेंचिंग, अबेंग, अटोंग, डुएल, माचिस, गारा के रूप में जाना जाता है।
गारो जनजातियों का समाज
गारो जनजातियों के बीच एक मातृसत्तात्मक समाज प्रचलित है। महिला को समाज में उच्च दर्जा प्राप्त है। गारो समाज में संपत्ति का सामुदायिक स्वामित्व प्रबल है। गारो जनजाति को अलग-अलग भाषाई और सांस्कृतिक समूहों में विभाजित किया गया है। विधवा पुनर्विवाह उनके बीच प्रचलित है।
गारो जनजातियों का व्यवसाय
झूम खेती, फसल के दौरान गारो जनजाति का मुख्य व्यवसाय है। गारो जनजातियों का आर्थिक जीवन कृषि और खेती के इर्द-गिर्द घूमता है। इस क्षेत्र की पहाड़ियाँ केवल झूम खेती के लिए उपयुक्त हैं। धान, कपास, मक्का, बाजरा, दालें उगाई जाती हैं।
गारो ट्राइब्स का धर्म
गारो आबादी का एक बड़ा वर्ग हैं जिन्होंने रोमन कैथोलिक धर्म का पालन किया है। ये गारो जनजाति इस धर्म से जुड़े लगभग सभी रिवाजों का पालन करती है। इस क्षेत्र की अधिकांश जनजातियों की परंपरा के बाद, गारो जनजाति के कई लोग हैं जो अभी भी अपने पारंपरिक आदिवासी और हिंदू मानदंडों और रीति-रिवाजों का पालन करते हैं।
गारो जनजाति के नृत्य
गारो लोग संगीत और नृत्य के बहुत शौकीन हैं। वे विभिन्न प्रकार के संगीत वाद्ययंत्रों का उपयोग करते हैं।