ग्वालियर की लड़ाई, 1848-1849

18 वीं शताब्दी के बाद से ग्वालियर ने ब्रिटिश प्रांत के रूप में कार्य किया। महलों और अमीरों में अपनी प्राच्य समृद्धि के कारण अंग्रेजों ने इसे अंग्रेजी प्रभुत्व के तहत आत्मसमर्पण करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस प्रकार राजाओं के काल पर अंकुश लगाने के लिए कई हेरफेर किए गए। ऐसे खतरनाक मामलों में युद्ध अपरिहार्य था। 13 दिसंबर 1843 को लॉर्ड एलेनबोरो ने ग्वालियर की महारानी को पत्र के माध्यम से चेतावनी दी कि वह एक सूदिंग रीजेंट को खारिज कर दें। पत्र में यह भी चेतावनी दी गई थी कि ग्वालियर सेना का आकार कम किया जाना चाहिए। दिसंबर के अशांत समय में जनरल सर ह्यूग गॉफ (1779-1869) ने ग्वालियर में चंबल नदी को पार किया, 1804 की संधि की शर्तों पर ब्रिटिश हस्तक्षेप को जिम्मेदार ठहराया। इस प्रकार ग्वालियर युद्ध की शुरुआत हुई। 29 दिसंबर क, अंग्रेजों ने महाराजपुर और पनियार में ग्वालियर की सेना के खिलाफ दो सफल लड़ाई लड़ी। 13 जनवरी 1844 को ग्वालियर के साथ एक नई संधि स्थापित की गई थी। छह मूल निवासियों की एक परिषद के लिए संधि की अनुमति ने सेना को 9000 तक कम कर दिया और ग्वालियर आकस्मिकता में ब्रिटिश अधिकारियों की संख्या में वृद्धि की। ग्वालियर राज्य ब्रिटिश दबाव में झुक गया और ब्रिटिशों की युद्धरत रणनीति को स्वीकार किया।

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