जहाँगीर, मुगल शासक

अकबर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जहाँगीर अगला मुग़ल शासक बना। जहाँगीर का आरंभिक नाम सलीम था, यह नाम सलीम चिश्ती के नाम पर रखा गया था। जहाँगीर का जन्म 30 अगस्त, 1569 ईसवी को फतेहपुर सीकरी में हुआ था। सलीम का राज्याभिषेक 1605 ईसवी में आगरा किले में हुआ था। शासक बनने के बाद जहाँगीर ने नूरदद्दीन मोहम्मद जहाँगीर बादशाह गाजी की उपाधि धारण की थी।
जहाँगीर के राज्याभिषेक के कुछ समय बाद ही उसके पुत्र खुसरों ने 1606 ईसवी में विद्रोह शुरू कर दिया। जहाँगीर ने खुसरो को भैरोवाल युद्ध में पराजित किया। खुसरो को हारने के बाद उसे कैद किया गया और बाद में उसे अँधा करवा दिया गया। जहाँगीर अत्यंत क्रूर शासक था। 1622 ईसवी में दक्कन में ले जाकर खुसरो की हत्या की गयी।
जहाँगीर ने सिख धर्म के पांचवे गुरु अर्जुनदेव को फांसी दी थी, गुरु अर्जुनदेव पर खुसरो को आशीर्वाद देने और उसकी सहायता करने के आरोप लगाया था। जहाँगीर ने अपने शासनकाल में 12 अध्यादेश जारी किये थे, इन अध्यादेशों ओ आइन-ए-जहाँगीर कहा जाता था। उसने आगरा के किले के शाह बुर्ज से यमुना नदी के तट पर सोने से निर्मित न्याय की जंजीर लगवाई थी।
जहाँगीर प्रकृति व चित्रकला का प्रेमी था। वह शराब का अत्यधिक सेवन करता था। उसके अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-जहाँगीरी’ में इसका वर्णन किया था।
आइन-ए-जहाँगीर

  • गैर ज़रूरी करों को समाप्त कर दिया गया, इसमें मीर, बहरी तथा तमगा प्रमुख थे।
  • सुरक्षा व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण।
  • लावारिस सम्पति को राजकोष में जमा करना। इसका उपयोग जन कल्याणकारी कार्यों के लिए किये जाने की व्यवस्था थी।
  • मादक पदार्थों पर प्रतिबन्ध।
  • अपराधियों के नाक-कान काटने की सजा पर प्रतिबन्ध।
  • उच्च अधिकारियों द्वारा किसान की ज़मीन जब्त करने पर रोक।
  • अस्पतालों की स्थापना।

जहाँगीर के शासनकाल में यूरोपीय लोगों का भारत में आगमन शुरू हुआ। जॉन हॉकिन्स ने 1608 से 1611 ईसवी तक कंपनी का नेतृत्व किया था। उसके बाद सम्राट जेम्स प्रथम का दूत टॉमस रो भारत में आया था, जहाँगीर ने 400 का मंसब प्रदान किया था। इसके अतिरिक्त जहाँगीर के शासनकाल में विलियम फिंच और एडवर्ड टेरी भी भारत आये।

  • अकबर के जन्मदिन, राज्याभिषेक दिवस तथा अकबर के जन्मदिन परपशुवध पर रोक।
  • रविवार का विशेष सम्मान, यह उसके पिता अकबर का जन्म दिवस था।
  • मनसब तथा विशेष जागीरों को स्थायी बनाया गया।
  • मदद-ए-माश को भी स्थायी बनाया गया।
  • कैदियों की रिहाई।
  • गैर ज़रूरी करों को समाप्त कर दिया गया, इसमें मीर, बहरी तथा तमगा प्रमुख थे।
  • सुरक्षा व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण।
  • लावारिस सम्पति को राजकोष में जमा करना। इसका उपयोग जन कल्याणकारी कार्यों के लिए किये जाने की व्यवस्था थी।
  • मादक पदार्थों पर प्रतिबन्ध।
  • अपराधियों के नाक-कान काटने की सजा पर प्रतिबन्ध।
  • उच्च अधिकारियों द्वारा किसान की ज़मीन जब्त करने पर रोक।
  • अस्पतालों की स्थापना।
  • अकबर के जन्मदिन, राज्याभिषेक दिवस तथा अकबर के जन्मदिन परपशुवध पर रोक।
  • रविवार का विशेष सम्मान, यह उसके पिता अकबर का जन्म दिवस था।
  • मनसब तथा विशेष जागीरों को स्थायी बनाया गया।
  • मदद-ए-माश को भी स्थायी बनाया गया।
  • कैदियों की रिहाई।

साम्राज्य का विस्तार
जहाँगीर ने मेवाड़ पर आधिपत्य स्थापित करने के लिए 1605 ईसवी से लेकर 1613 ईसवी तक कई कई अभियान भेजे। अंतिम अभियान खुर्रम के नेतृत्व में भेजा गया था। इस दौरान मेवाड़ के राणा अमर सिंह और मुगलों के बीच 1615 ईसवी में संधि हुई। राणा अमर सिंह ने मुगलों का आधिपत्य स्वीकार कर लिया था। संधि के अनुसार राजकुमार करण सिंह को मुग़ल दरबार में भेजा गया, उसने 5000 का मनसबदार बनाया गया।
जहाँगीर ने दक्षिणी भारत में भी अपना आधिपत्य स्थापित करने के प्रयास किया। उसने अहमदनगर पर विजय प्राप्त करने के लिए कई अभियान भेजे, परन्तु वे सभी अभियान असफल रहे। वर्ष 1617 ईसवी में खुर्रम के नेतृत्व में अहमदनगर को अभियान भेजा गया, यह अभियान सफल रहा। इस अभियान के परिणामस्वरुप अहमदनगर और मुगलों के बीच संधि हुई। इस संधि में बीजापुर में मध्यस्थता की थी। इस अभियान की सफलता के बाद जहाँगीर ने खुर्रम को शाहजहाँ की उपाधि प्रदान की थी।
जहाँगीर ने 1620 ईसवी में हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा राज्य पर आधिपत्य स्थापित किया था। अकबर भी काँगड़ा किले को जीतने में असफल रहा था। इस अभियान में मुग़ल सेना का नेतृत्व राजा विक्रमजीत ने किया था। वर्ष 1611 ईसवी में टोडरमल के पुत्र कल्याणमल ने खर्दा पर विजय प्राप्त की। 1613 ईसवी में मुगलों ने कामरूप पर विजय प्राप्त की। वर्ष 1615 ईसवी में नूरजहाँ के भाई इब्राहिम खां ने खोखर को पर विजय प्राप्त की थी। कश्मीर के किश्तवार पर 1620 ईसवी में मुगलों का आधिपत्य स्थापित हुआ था।
जहाँगीर के शासनकाल में प्रमुख विद्रोह
जहाँगीर को अपने शासनकाल में काफी विद्रोहों का सामना करना पड़ा। सर्वप्रथम उसके पुत्र खुसरों ने ही 1606 ईसवी विद्रोह किया। जहाँगीर ने खुसरो के आन्दोलन का क्रूरतापूर्वक दमन किया। खुसरो को कैद करवाकर उसे अँधा बना दिया गया। कुछ समय बाद उसकी हत्या कर दी गयी। 1623 ईसवी में शाहजहाँ ने भी विद्रोह किया। इस विद्रोह का लाभ उठाकर फारस के शाह ने कंधार पर 1622 ईसवी में कब्ज़ा कर लिया। शाहजहाँ के विद्रोह को महावत खां और परवेज़ ने दबा दिया था। वर्ष 1626 ईसवी में महावत खां ने विद्रोह किया, बाद में उसे दक्षिण भागना पड़ा। दक्षिण में वह शाहजहाँ का पक्षकार बन गया। 1612 ईसवी में अफगानों ने बंगाल में विद्रोह किया, इस विद्रोह को इस्माइल खां ने कुचल दिया था। वर्ष 1627 में जहाँगीर की मृत्यु हो गयी, उसे लाहौर के निकट शाहदरा में दफनाया गया था।

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