जोरहाट जिले का इतिहास
जोरहाट अहोम साम्राज्य की अंतिम राजधानी थी। 1794 में अहोम राजा गौरीनाथ ने राजधानी को शिवसागर (पूर्व में “रंगपुर”) से जोरहाट में स्थानांतरित कर दिया। यह शहर एक समृद्ध और वाणिज्यिक महानगर था, लेकिन 1817 से डेविड स्कॉट और कैप्टन रिचर्ड के नेतृत्व में वर्ष 1824 में ब्रिटिश सेना के आगमन तक बर्मी आक्रमणों की एक श्रृंखला के बाद नष्ट हो गया। ब्रिटिश शासन के पहले दशक से ही गोमधर कोंवर, जेउराम और पियाली बरुआ जैसे कुछ महान क्रांतिकारियों का उदय हुआ। 1839 में एक पुलिस थाने की स्थापना के साथ ब्रिटिश प्रशासन प्रणाली प्रचलन में आई। 1857 के सिपाही विद्रोह के दौरान इन महान नेताओं को 1858 में फांसी दे दी गई थी। 1885 में नैरो गेज ट्रेन सेवाएं (जोरहाट प्रांतीय रेलवे) परिचालन में आई थीं और अंततः इस क्षेत्र के चाय उद्योग के तेजी से विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जोरहाट में सिबसागर जिले के तहत नागरिक उप-मंडल का गठन वर्ष 1869 में किया गया था। इस स्थान को वर्ष 1911 में अविभाजित शिवसागर जिले के प्रशासन मुख्यालय के रूप में घोषित किया गया था। जिसमें वर्तमान शिवसागर, जोरहाट और गोलाघाट जिले शामिल थे। अहोम शासन काल से ही माजुली वैष्णवों का प्रमुख तीर्थ रहा है। कई सत्र मध्ययुगीन मठों से मिलते-जुलते हैं, जिनकी अध्यक्षता सतराधिकार करते हैं और वैष्णववाद का प्रचार करते हैं, जिसकी शुरुआत शंकरदेव (1449-1568) ने की थी। जोरहाट जिला एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है। जोरहाट जिले का इतिहास महत्वपूर्ण परिवर्तनों और घटनाओं की एक श्रृंखला के साथ दिलचस्प है।