दक्कन की मूर्तियाँ
दक्कन की मूर्तियां अपने आकर्षक सजावटी डिजाइनों के लिए जानी जाती हैं। वे गुप्त कला के सच्चे सार को प्रतिध्वनित करती हैं। मूर्तियां मुख्य रूप से चोल, पल्लव, चालुक्य, होयसला और राष्ट्रकूट जैसे शासक राजवंशों से प्रभावित हुई हैं। इन शासकों ने अपनी खुद की एक स्वतंत्र शैली का उत्पादन किया। दक्कन मूर्तिकला पर हिंदू और मुस्लिम दोनों प्रभाव देखे जा सकते हैं।
दक्कन की मूर्तियों पर हिंदू प्रभाव
दक्कन की हिंदू मूर्तियां हिंदू धर्मग्रंथों से काफी प्रेरित हैं। यह विशेष रूप से मोगुलराजपुरम और उंडावल्ली की गुफाओं में सुंदर मूर्तियों का सच है। बाद की जगह पर की गई नक्काशी में हिंदू पौराणिक कथाओं जैसे वराह, गज-ग्राह, गोवर्धन धारी भगवान कृष्ण इत्यादि शामिल हैं, जिनमें से सभी गुप्त युग से प्रेरित हैं हैं। इस अवधि की मूर्ति आकर्षक सजावटी डिजाइनों में समृद्ध है। गढ़वा के एक दरवाज़े पर कल्पलता आकृति का बहुत ही कलात्मक शैली में इलाज किया जाता है। गुप्तकालीन मूर्तियों का एक और उदाहरण देवगढ़ के दशावतार मंदिर में मिल सकता है। इसमें एक तरफ नक्काशीदार दरवाजा है और तीन दीवारों के बाहर तीन बड़ी मूर्ति हैं। उनमें से एक में नर और नारायण की तपस्या, दूसरे में गजेन्द्र और तीसरे में शेष का वर्णन है। इन मूर्तियों की सुंदरता भगवान के भक्तों की गहरी धार्मिक भक्ति का प्रमाण है, जिन्होंने इस तरह की कला का संरक्षण किया है।
दक्कनकी मूर्तियों पर इस्लामी प्रभाव
15 वीं शताब्दी के अंत में दक्कन की मूर्तिकलापर इस्लामिक प्रभाव पड़ना शुरू हुआ। दक्कन की सल्तनत अस्तित्व में आई और इस बार दक्कन की मूर्तियां और वास्तुकला की विशेषताएं इस्लामी वास्तुकला से प्रेरित थीं। दक्कन की मूर्तिकला को भारत-इस्लामी वास्तुकला के रूप में भी जाना जाता था। प्रमुख विशेषताएं गुंबद के आकार के स्मारक थे और खंभे मीनारों से बदल दिए गए थे। शिलालेखों की जगह मस्जिदों की दीवारों पर उकेरी गई कुरान की आयतें हैं। हालांकि, हिंदू स्मारक जैसे कमल, लटकन और अन्य भी इन स्मारकों पर पाए जाते हैं।