पाण्ड्य राजवंश
चोल और चेर राजवंश के बाद पांड्य राजवंश दक्षिण भारत का तीसरा महत्वपूर्ण राजवंश था। आरंभिक पांड्य शासकों ने चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से शासन किया था, पांड्य राजवंश का पतन 16वीं शताब्दी में हुआ। आरम्भ में पांड्य शासकों ने पांड्य नाडू नामक क्षेत्र पर शासन किया। तत्पश्चात उन्होंने मदुरै में शासन किया। पांड्य राजवंश का प्रतीक चिन्ह मछली थी। पांड्य शासकों के कूटनीतिक सम्बन्ध रोमन शासकों के साथ भी थे। आरम्भ में पांड्य शासक जैन धर्म के अनुयायी थे परन्तु बाद में वे शैव धर्म के अनुयायी बने।
संगम का आयोजन पांड्य शासकों के काल में मदुरै में किया गया था। पांड्य शासक साहित्य में काफी रुचि रखते थे, कुछ एक पांड्य शासक स्वयं भी कवि थे। चोल साम्राज्य के उदय के दौरान 9वीं सदी में पांड्य शक्ति क्षीण हो गयी है। चोलों का सामना करने के लिए पांड्य शासकों ने सिंहल और चेर शासकों से सहायता प्राप्त की। 13वीं सदी के दौरान पांड्य साम्राज्य का स्वर्ण काल था, इस दौरान पांड्य साम्राज्य का विस्तार तेलुगु क्षेत्र में हुआ। पश्चात् पांड्य शासकों ने कलिंग और श्रीलंका पर भी विजय प्राप्त की। है।