प्राचीन भारतीय इतिहास : 7 – ऋग्वैदिक कालीन साहित्य
ऋग्वेद विश्व के इतिहास की सबसे पुरानी पुस्तक है। ऋग्वेद की रचना ऋग्वैदिक काल में हुई बाकी तीनों वेद यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद की रचना उत्तर वैदिक काल में हुई। वेदांग, पुराण, उप-पुराण, आरण्यक, उपनिषद, आदि की रचना भी उत्तर वैदिक काल में ही हुई।
ऋग्वेद
ऋग्वेद विश्व की प्राचीनतम पुस्तक है, इसमें 10 मंडल और 1028 सूक्त हैं। ऋग्वेद संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं। ऋग्वेद के दूसरे से सातवें मंडल सबसे पुराने हैं। जबकि ऋग्वेद का दसवां मंडल सबसे नया है। ऋग्वेद का पाठ करने वाले को होता अथवा होत्री कहा जाता है। गायत्री मंडल ऋग्वेद के तीसरे मंडल में है, इसके रचनाकार विश्वामित्र है, यह मन्त्र सूर्य देवता को समर्पित है।
वेदों की भाषा पद्यात्मक है, इसमें लोपामुद्रा, घोष, अपाला, विश्ववारा, सिकता, शची, पौलोमी और कक्षावृत्ति आदि स्त्री विद्वानों ने कई मन्त्रों की रचना की है। ऋग्वेद के दूसरे से आठवें मंडल के रचयिता गृत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भारद्वाज, वशिष्ठ, कण्व व अंगीरा हैं।
ऋग्वेद की पांच शाखाएं हैं जो शाकल, वाष्कल, आश्वलायन, शांखायन और मंडूकायन हैं। ऋग्वेद का नौंवा मंडल सोम को समर्पित है। ऋग्वेद के दसवें मंडल को पुरुषसूक्त भी कहा जाता है, इसमें शूद्रों का उल्लेख किया गया है। दसवें मंडल में नासदीय सूक्त, सवांद सूक्त तथा विवाह सूक्त का वर्णन किया गया है।
ब्राह्मण ग्रंथ
वेदों की गद्य रचना को ब्राह्मण ग्रंथ कहा जाता है। ब्राह्मणों की रचना कर्मकांडों की जटिल व्याख्या का सरल वर्णन करने के लिए की गयी थी। इनकी रचना गद्य शैली में की गयी है।
ब्राह्मण ग्रन्थों की रचना ऋग्वेद के समय से ही शुरू हुई। ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ ऐतरेय और कौशितिकी हैं। ऐतरेय ब्राह्मण की रचना महिदास ऐतरेय ने की थी, इसमें राज्याभिषेक के नियमों का विवरण दिया गया है।
कौशितिकी ब्राह्मण को शंखायन भी कहा जाता है। इसकी रचना शंखायन अथवा कौशितिकी द्वारा की गयी थी। इसमें मानव के व्यवहार के सन्दर्भ में निर्देश लिखित हैं।