प्राचीन भारतीय इतिहास : 9 – उत्तर वैदिक कालीन साहित्य
उत्तर वैदिक काल में अंतिम तीन वेद यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद की रचना की गयी। इसके अलावा उपनिषद, पुराण, अन्य ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक, वेदांग की भी रचना की गयी।
सामवेद
सामवेद में 1,875 ऋचाएं हैं, इसमें 75 सूक्तों को छोड़कर शेष ऋग्वेद से लिए गए हैं। यह भारतीय संगीतशास्त्र की सबसे पुरानी पुस्तक है। सामवेद का गायन करने वाले व्यक्ति को उद्गाता कहा जाता था। सामवेद की तीन शाखाएं कौन्थुम, जैमिनीय और रामायणीय हैं। सामवेद का प्रथम द्रष्टा वेदव्यास के शिष्य जैमिनी को माना जाता है।
यजुर्वेद
यजुर्वेद गद्य तथा पद्य दोनों शैलियों में लिखा गया है, इसमें यज्ञ की विभिन्न विधियों के बारे में बताया गया है। यजुर्वेद में 40 मंडल तथा लगभग 2000 मन्त्र हैं। यजुर्वेद के दो भाग हैं – कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद।वाजसनेयी संहिता, तैत्तरीय, मैत्रायणि और काठक संहिता का सम्बन्ध कृष्ण यजुर्वेद से है। यजुर्वेद का अध्ययन करने वाले को अध्वर्यु कहा जाता है। कृष्ण यजुर्वेद की रचना गद्य शैली में जबकि शुक्ल यजुर्वेद की रचना पद्य शैली में की गयी है।
यजुर्वेद में कृषि और सिंचाई की विधियों का उल्लेख किया गया है। यजुर्वेद में चावल की विभिन्न किस्मों का उल्लेख किया गया है। इसमें राजसूय, वाजपेय और अश्वमेध यज्ञ व रत्निनों का वर्णन किया गया है।
अथर्ववेद
अथर्ववेद की रचना अथर्वा ऋषि ने की थी, इसमें तंत्र मन्त्र इत्यादि का विवरण दिया गया है। यजुर्वेद से प्राचीन भारतीय औषधि और विज्ञान के सम्बन्ध में उपयोगी जानकारी मिलती है। यजुर्वेद में रोग के निवारण के लिए तंत्र मन्त्र के उपयोग का वर्णन किया गया है। अथर्ववेद की दो शाखाएं शौनक और पिप्पलाड हैं। इसे ब्रह्मावेड, भैषज्य्वेद तथा महीवेद भी कहा जाता है। अथर्ववेद से भारतीय वस्तुकला की जानकारी मिलती है, इसमें वास्तुशास्त्र का विवरण दिया गया है।
अथर्ववेद का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा आयुर्विज्ञान से सम्बंधित है। भूमि सूक्त में सर्वप्रथम राष्ट्रवाद का उल्लेख मिलता है।
ब्राह्मण– ग्रंथ
प्रत्येक वेदों की गद्य रचना ही ब्राह्मण-ग्रंथ है। ब्राह्मण ग्रंथ इस प्रकार हैं-
- ऋग्वेद- ऐतरेय, कौशितिकी
- सामवेद- पंचविश, षडविंश, आर्षेय, छांदिग्य, जैमिनीय
- यजुर्वेद- तैत्तिरीय, शतपथ, कठ, कपिष्ठल
- अथर्ववेद- गोपथ
आरण्यक
आरण्यक की रचनाअरण्य अर्थात वनों में की गयी थी। इनकी रचना ऋषियों द्वारा की गयी थी। इसका मुख्य विषय क्षेत्र रहस्यवाद, प्रतीकवाद और दर्शन है। आरण्यक का अध्ययन एकांत तथा वन में किया जाता है। इसमें तप पर बल दिया गया है।
उपनिषद
उपनिषद की विषय सामग्री दार्शनिक है, इसमें दार्शनिक विचारों का संग्रह है। उपनिषद में आत्मा व ब्रह्मा के सम्बन्ध की व्याख्या की गयी है। उपनिषद की कुल संख्या 108 है, इन्हें वेदांत भी कहा जाता है। इसमें ज्ञान को प्रमुखता दी गयी है। उपनिषद का विषय ब्रह्मा होने के कारण इन्हें ब्रह्मा विद्या भी कहा जाता है। “सत्यमेव जयते” आदर्श वाक्य मुंडकोपनिषद से लिया गया है।
वेदांग
वेदांग में संक्षिप्त ज्ञान दिया गया है। इनका उपयोग जटिल वैदिक साहित्य को समझने के लिए किया जाता है। वेदांग की कुल संख्या 6 है, शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण, छंद व ज्योतिष 6 प्रमुख वेदांग हैं।
सूत्रकालीन सभ्यता
छठवीं से तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के काल को सूत्रकाल कहा जाता है। इस दौरान वर्ग का रूपांतरण जातियों में हो गया, और जातियां का आधार कर्म के स्थान पर जन्म हो गया।
सूत्र साहित्य
- कल्प सूत्र में विधि व नियमों का विवरण दिया गया है।
- श्रौत सूत्र में यज्ञ सम्बन्धी विधि विधान का विवरण दिया गया है।
- शुल्वसूत्र में यज्ञ स्थल व अग्निवेदी के निर्माण से सम्बंधित नियमों का उल्लेख किया गया है। इसमें शुरूआती भारतीय ज्यामिति का उल्लेख भी है।
- धर्म सूत्र में सामाजिक व धार्मिक नियमों का उल्लेख है।
- गृह सूत्र में मानव के लौकिक और अलौकिक कर्तव्यों का वर्णन किया गया है।