फ्रैंक एंथोनी
फ्रैंक एंथोनी का जन्म 25 सितंबर 1908 को मध्य प्रदेश के जबलपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम डॉ आर.जे. एंथोनी था। फ्रैंक एंथोनी बहुत बुद्धिमान छात्र थे। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की। वह विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के टॉपर थे और उन्हें वायसराय के स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था। वह लंदन चले गए और लॉ की डिग्री प्राप्त की। फ्रैंक एंथोनी भारत वापस आए और जबलपुर में कानूनी प्रैक्टिस शुरू की। एक एंग्लो इंडियन होने के नाते उन्होंने भारत में एंग्लो इंडियन कम्युनिटी के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। वो “ऑल इंडिया एंग्लो-इंडियन एसोसिएशन” के प्रमुख रखे।
फ्रैंक एंथनी राष्ट्रीय रक्षा परिषद में सभी यूरोपीय और भारतीय कमीशन अधिकारियों के लिए समान भुगतान सुरक्षित करने में कामयाब रहे और भारत की संसद में लोकसभा सीटों के लिए आरक्षित सीटों को भारत के अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में एंग्लो इंडियन के लिए नामित किया। फ्रैंक एंथोनी विभाजन के खिलाफ थे क्योंकि यह भारत के अल्पसंख्यक समुदायों के लिए हानिकारक होगा। उन्होंने भारत के संविधान सभा के सदस्य के रूप में भारतीय संविधान में एंग्लो-इंडियन के लिए विशेष प्रावधान की भी मांग की।
फ्रैंक एंथोनी संयुक्त राष्ट्र में स्वतंत्र भारत के पहले प्रतिनिधिमंडल थे। उन्होंने 1948 और 1957 में राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। फ्रैंक एंथनी ने एंग्लो समुदाय के बीच शिक्षा के प्रसार में बहुत योगदान दिया। उन्हें इंटर-स्टेट बोर्ड ऑफ एंग्लो-इंडियन एजुकेशन के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। फ्रैंक एंथोनी ने अखिल भारतीय एंग्लो-इंडियन एजुकेशनल ट्रस्ट की स्थापना की और इसके अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। वर्तमान में यह संस्था कलकत्ता, दिल्ली और बैंगलोर में पाँच फ्रैंक एंथोनी पब्लिक और जूनियर स्कूल चलाती है। वह भारतीय स्कूल प्रमाणपत्र परीक्षा के अध्यक्ष भी थे। फ्रैंक एंथोनी ने एंग्लो इंडियन छात्र को छात्रवृत्ति और ऋण प्रदान करने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं, जो शिक्षक प्रशिक्षण लेने के लिए तैयार हैं। एक वकील के रूप में उन्होंने 1952 में उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत के पूर्व-वित्त मंत्री मेहर चंद खन्ना का सफलतापूर्वक बचाव किया। फ्रैंक एंथोनी ने “ब्रिटेनस ब्रिटैल इन इंडिया: द स्टोरी ऑफ द एंग्लो-इंडियन कम्युनिटी” पुस्तक लिखी। 1993 में उनका निधन हो गया।