बानी बसु

बानी बसु अपनी अनूठी लेखन तकनीक के लिए जानी जाती हैं। वह अपने विचारों को अत्यधिक स्पष्टता, शक्तिशाली संवाद और शैलीबद्ध भाषा के साथ प्रस्तुत करती है। बानी बसु ने आधुनिक बंगाली साहित्य में बहुत योगदान दिया है।
बानी बसु का प्रारंभिक जीवन
बानी बसु एक प्रसिद्ध बंगाली लेखक, आलोचक, कवि और निबंधकार हैं। उनका जन्म 11 मार्च, 1939 को पश्चिम बंगाल राज्य में कोलकाता में हुआ था। बानी बसु ने लेडी ब्रेबोर्न कॉलेज, स्कॉटिश चर्च कॉलेज और कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी की। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में ऑनर्स ग्रेजुएशन और एमए पूरा किया। वह समकालीन बंगाली साहित्य की एक प्रमुख हस्ती हैं।
कार्य
उन्होंने एक अनुवादक के रूप में अपना करियर शुरू किया और श्री अरबिंदो घोष की कविताओं का उनका पहला अनुवाद “श्रीनवंतु” नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ। वर्ष 1980 में बानी बसु ने एक मूल लेखक के रूप में अपने करियर की शुरुआत पश्चिम बंगाल की लोकप्रिय पत्रिकाओं जैसे “आनंदमाला” और फिर “देश” में अपने प्रकाशनों के साथ की। उनके कुछ लेख और उपन्यास लोकप्रिय टीवी धारावाहिकों और फिल्मों का आधार भी बने हैं। उन्होने ‘जन्मभूमि मातृभूमि’, ‘स्वेत पत्थरथाला’, ‘मैत्रेय जातक’, ‘एकुशे पा’, ‘पंचम पुरुष’, ‘गंधर्वी’, ‘अष्टम गर्भ’ कि रचना की है। बांग्ला साहित्य की सबसे रचनात्मक और प्रतिभाशाली महिला लेखकों में से एक बानी बसु ने अपने करियर की शुरुआत से ही आलोचकों का ध्यान आकर्षित किया। उनकी कहानियों ने सजीव पात्रों को आबाद करके पश्चिम बंगाल राज्य की समकालीन स्थिति को दर्शाया है। उनका कार्य समाजशास्त्र और इतिहास की उनकी मजबूत भावना को भी दर्शाता है। बानी बसु की पुस्तकें वर्तमान युग के समकालीन और आधुनिक समाज पर आधारित विषयों को चित्रित करती हैं। बानी बसु की कई पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। उनके द्वारा लिखी गई कुछ कहानी की किताबें ‘मोहना’, ‘समुद्र’, ‘नाना स्वदेर गल्पा’, ‘वरंदा -ओ-अनन्या’, ‘गोल्पर सत सटेरो’ हैं।
बानी बसु ने कई प्रतिष्ठित पुरस्कार हासिल किए हैं जैसे ” “मैत्रेय जातक” के लिए आनंद पुरस्कार” और “अंतरघाट” के लिए “ताराशंकर पुरस्कार”। उन्हें “साहित्य सेतु पुरस्कार” और “सुशीला देवी बिड़ला पुरस्कार” भी मिला है। वर्ष 2010 में उन्हें भारत सरकार द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।

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