बिस्वनाथ दास, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी

बिस्वनाथ दास का जन्म उड़ीसा में गंजम जिले के पोलासरा गाँव में हुआ था। उन्होंने विक्टोरिया हाई स्कूल, कटक से मैट्रिक की परीक्षा पास की। बिश्वनाथ दास ने 1916 में रेनशॉ कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। कलकत्ता विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने 1918 में मधुसूदन दास के तहत कानूनी प्रैक्टिस शुरू की। 1920 में उन्होंने बेरहामपुर कोर्ट में वकालत शुरू की।

बिश्वनाथ दास भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े थे और उन्होंने असहयोग आंदोलन और नमक सत्याग्रह में भाग लिया था। 1921 से 1931 तक वह मांडराज विधान परिषद के सदस्य थे। 1937 में पहले प्रांतीय सरकार के चुनाव में उन्हें उड़ीसा विधानसभा में चुना गया और उन्हें उड़ीसा का मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। दो साल के बाद उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। 1942 में बिश्वनाथ दास ने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और ब्रिटिश शासकों द्वारा कैद किया गया। 1952 में उन्हें उत्कल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। 1961 में बिस्वनाथ दास फिर से चुनाव जीते और उड़ीसा विधान सभा के सदस्य बने। अगले वर्ष में उन्हें उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया और इस पद पर छह साल तक कार्य किया।

1966 में बिश्वनाथ दास को अखिल भारतीय लोक सेवक मंडल के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। उड़ीसा में राजनीतिक अस्थिरता के समय के दौरान उन्हें फिर से उड़ीसा के मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने किसानों की सुरक्षा के लिए कई कानून बनाए। संस्कृत शिक्षा का प्रसार करने के लिए बिस्वनाथ दास ने एक लाख रुपए का दान दिया। बिश्वनाथ दास भारतीय संस्कृति और धर्म से प्यार करते थे और कई सांस्कृतिक संगठनों से जुड़े थे। उन्होंने जमींदारी प्रथा के विरोध में प्रेसीडेंसी रायट एसोसिएशन और आंद्रा ज़मींदारी रायट्स एसोसिएशन की स्थापना की।

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