ब्रजभाषा
ब्रजभाषा उत्तर भारत की एक लोकप्रिय भाषा है। इसे ‘बृज भाषा’, ‘ब्रज भाखा’ या ‘देहाती ज़बान’ के नाम से भी जाना जाता है। यह हिन्दी भाषा की एक बोली है। मध्य काल में ब्रज और अवध प्रमुख साहित्यिक भाषाएँ थीं। प्रमुख मध्य भारत की यह लोकप्रिय भाषा बहुसंख्यक लोगों द्वारा बोली जाती है। महाभारत काल में इस क्षेत्र को एक राजनीतिक राज्य के रूप में परिभाषित किया गया था। यह विशेष क्षेत्र आगरा-मथुरा क्षेत्र के बीच में स्थित है, और यह दिल्ली के आसपास तक फैला हुआ है। आज ब्रजभूमि को एक सांस्कृतिक-भौगोलिक निकाय के रूप में माना जाता है। ब्रजभाषा का अवधी भाषा से विशेष संबंध है। मध्यकाल में हिन्दी साहित्य का प्रमुख भाग ब्रजभाषा में विकसित हुआ। आज खड़ी बोली ने हिंदी भाषा की प्रमुख आदर्श बोली के रूप में जगह ले ली है। इसके अतिरिक्त आधुनिक भारत में ब्रज भाषा ब्रजभूमि के मूल निवासियों द्वारा बोलचाल की भाषा में बोली जाती है। इस भाषा का सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ धार्मिक महत्व भी है। हिन्दी काव्य और साहित्य का एक बड़ा भाग ब्रजभाषा में है। भगवान कृष्ण को समर्पित भक्ति कविताओं की रचना भी ब्रज भाषा में की गई थी। आज ब्रज भाषा को मूल रूप से एक ग्रामीण भाषा के रूप में माना जाता है जो ब्रज क्षेत्र में अधिक लोकप्रिय है। यह भाषा देश के निम्नलिखित जिलों में प्रमुख है – मथुरा, आगरा, अलीगढ़, बुलंदशहर, गौतम बुद्ध नगर, फिरोजाबाद, हाथरस, एटा, कासगंज। उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त यह भाषा हरियाणा के कुछ क्षेत्रों में विशेष रूप से बोली जाती है। ब्रज भाषा राजस्थान के पड़ोसी क्षेत्रों में भी बोली जाती है। इस भाषा में किए गए अधिकांश साहित्यिक कार्य कवियों द्वारा किए गए थे जो ईश्वर-प्राप्त संत थे। ब्रजभाषा साहित्य की विशेषता यह है कि इसकी अधिकांश रचनाएँ नारी की दृष्टि से लिखी गई हैं। बृजभाषा क्षेत्रों में कुछ महत्वपूर्ण और अत्यधिक लोकप्रिय रचनाएँ सूरदास, तुलसीदास, रहीम, वल्लभचार्य, रसखान आदि द्वारा की गईं थीं। ।