भारतीय शास्त्रीय नृत्य

भारत में शास्त्रीय नृत्य , नृत्य कला के कई रूप हैं। इंका विधान भआरटी-मुनि के नाट्यशास्त्र में मिलता है। संगीत अकादमी द्वारा भारत में कुछ शास्त्रीय नृत्यों को मान्यता दी गयी है-
भरतनाट्यम
भरतनाट्यम तमिलनाडू का एक शास्त्रीय नृत्य है। यह भारत के प्रसिध्द शास्त्रीय नृत्यों में से एक है। इसका पहला वर्णन भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में मिलता है। भरतनाट्यम को सबसे प्राचीन शास्त्रीय नृत्य माना जाता है। हालांकि मध्यकाल में देवदासियों द्वारा किए जाने के कारण भरतनाट्यम को उचित सम्मान नहीं मिल पाया। ब्रिटिश काल में मंदिरों में नृत्य पर रोक लगा दी गयी। ई कृष्ण अय्यर और रुक्मिणी देवी के प्रयासों से भरतनाट्यम दोबारा विकसित हुआ।
भरतनाट्यम में तीन अंग होते हैं- नाट्य, नृत और नृत्य। इसमें जीवन के तीन मूल तत्व दर्शन शस्त्र, धर्म और विज्ञान हैं। भरतनाट्यम को पहले दासी अट्टम, तंजावुरनाट्यम के नाम से भी जाना जाता था।
कुचीपुड़ी
कुचीपुड़ी आंध्र प्रदेश का एक शास्त्रीय संगीत है। इसका मूल नाम कुचेलापुरी या कुचेलापुरम था जो आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले का एक कस्बा है। इसकी शुरुआत ब्राह्मण परिवारों ने की। इस पहले ब्राह्मण परिवार के पुरुषों द्वारा किया जाता था। इसे 15 ब्राह्मण परिवारों ने आगे तक चलाया। इसका प्रारम्भिक जिक्र नाट्यशास्त्र में मिलता है। आज के युग में महिलाएं भी इस नृत्य में पुरुषों के साथ भाग लेने लगी हैं। इसके प्रसिद्ध नर्तक वेदांतम लक्ष्मी नारायण, चिंता कृष्णा मूर्ति, तादेपल्ली पेराया स्वप्न सुंदरी, राजा और राधा रेड्डी, यामिनी कृष्णमूर्ति, यामिनी रेड्डी, कौशल्या रेड्डी हैं।
कथकली
कथकली केरल का प्रसिद्ध संगीत नृत्य है। इसका विकास 17वीं सदी में हुआ था। इसका आविष्कार राजा कोट्टारक्करा तंपुरान ने रमनट्टम के रूप में किया था जो विकसित होकर कथकली के रूप में विकसित हुआ। यह मालबार, कोचीन और त्रावणकोर में विकसित हुआ। कलामण्डलम उण्णिकृष्ण कुरुप, तकष़ि कुट्टन पिल्लै, चेर्तला कुट्टप्पा कुरुप, कलामण्डलम गंगाधरन, कलामण्डलम नीलकंठन नंपीशन, वेंकिटकृष्ण भागवतर, कलामण्डलम शंकरन एम्प्रांतिरि, कलामण्डलम हैदर अली, कलामण्डलम हरिदास आदि प्रमुख नरतह रहे हैं।
ओड़िसी
ओड़िसी उड़ीसा का एक शास्त्रीय नृत्य है। यह प्राचीन शिलालेखों, पुस्तकों आदि में मिलता है। आधुनिक काल में इसका पुनर्विकास हुआ। यह एक अति प्राचीन शास्त्रीय नृत्य है।
कत्थक
कत्थक शब्द की उत्पत्ति कथा शब्द से हुई है। यह तीन रूपों में पाया जाता है जिसे घराना कहा जाता है:- जयपुर घराना, बनारस घराना और लखनऊ घराना। इसका पहला जिक्र नाट्यशास्त्र में मिलता है। भक्ति आंदोलन में इसका काफी प्रभाव रहा। इसे मुगल राजाओ के दरबारों में भी किया जाता था। अंग्रेजों के समय में कत्थक का प्रभाव कम हो गया, किन्तु उसके बाद इसका पुनरोत्थान हुआ। इसके प्रमुख नर्तक शंभू महाराज, लच्छू महाराज, बिरजू महाराज रहे हैं। पंडित जयलाल, पंडित नारायण प्रसाद, पंडित सुन्दर प्रसाद, मोहनलाल, पंडित महादेव, पंडित शम्भू महाराज इस नृत्य के अन्य नर्तक रहे हैं।
मणिपुरी
मणिपुरी भारत के शास्त्रीय नृत्यों में से एक है। इसका विकास पूर्वोत्तरी राजी मणिपुर में हुआ, इस कारण इसे मणिपुरी कहा गया है। इसे जगोई भी कहा जाता है। यह मुख्य रूप से वैष्णव संप्रदाय के प्रसंगों पर आधारित है जिसमें राधा-कृष्ण के प्रेम प्रसंग प्रमुख हैं। इसमें एक विशेष वेशभूषा पाहणी जाती है जिसे कुमिल कहा जाता है।
मोहिनीअट्टम
यह केरल का प्रमुख नृत्य है। इसे मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है। इसे कथकली से अधिक पूयराना माना जाता है। यह भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार पर आधारित है, जिस कारण इसे मोहिनीअट्टम कहा जाता है। माना जाता है इसी नृत्य के साथ भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप रखकर भस्मासुर को भ्रमित करके उसका वध किया था। इस नृत्य में नृत्‍य ताल चार प्रकार के होते हैं: तगानम, जगानम, धगानम और सामीश्रम। इसका पहला जिक्र भारतमुनि के नाट्यशास्त्र में हुआ था।
सत्रीया नृत्य
यह असम का एक प्रमुख शास्त्रीय नृत्य है। यह वर्ष 2000 में भारत के शास्त्रीय नृत्यों में शामिल हुआ। इसके प्रमुख नर्तक बापुराम बरबायान अतैई, रोसेश्वर सैकिया बरबायान, परमान्दा बरबायान, गुणकँता डटा बरबायान , माणिक बरबायान, जतिन गोस्वामी, प्रभात शर्मा, आनंदा मोहन भगवती, कोशा कांटा देवा गोस्वामी रहे हैं।
कुटियाट्टम
यह केरल का एक शास्त्रीय नृत्य है जो दो हजार वर्ष पुराना है। इसे मुख्य रूप से चकयार और नाम्बियार समुदाय की महिलाएं करती थीं लेकिन अब इसे सब करने लगे हैं।

Advertisement

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *