भारत की ड्राफ्ट आर्कटिक नीति : मुख्य विशेषताएं

भारत सरकार ने हाल ही में एक ड्राफ्ट आर्कटिक नीति जारी की है। यह ड्राफ्ट नीति सतत पर्यटन, वैज्ञानिक अनुसंधान, आर्कटिक क्षेत्र में गैस और खनिज तेल की खोज का विस्तार करने के लिए प्रतिबद्ध है।

मुख्य  बिंदु

यह आर्कटिक ड्राफ्ट नीति 26 जनवरी तक जनता के लिए समीक्षा के लिए खुली है। इस नीति को कई मंत्रालयों के बीच विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है। उम्मीद जताई जा रही है कि National Centre for Polar and Ocean Research वैज्ञानिक अनुसंधान का नेतृत्व करने के लिए एक नोडल निकाय के रूप में कार्य करेगा और घरेलू वैज्ञानिक अनुसंधान क्षमताओं को बढ़ावा देकर विभिन्न वैज्ञानिक निकायों के बीच समन्वय स्थापित करेगा। भारतीय विश्वविद्यालयों में जैविक विज्ञान, पृथ्वी विज्ञान, भू विज्ञान, अंतरिक्ष से संबंधित कार्यक्रम, जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित अनुसंधान क्षमताओं को बढ़ावा दिया जाएगा।

इस नीति के अन्य उद्देश्यों में पर्यटन को बढ़ावा देना, तेल / खनिज, और गैस की खोज को प्रोत्साहित करना है।

आर्कटिक से सटे पाच देशों – डेनमार्क (ग्रीनलैंड), कनाडा, नॉर्वे, संयुक्त राज्य अमेरिका (अलास्का) और रूस – और तीन अन्य आर्कटिक देश – स्वीडन, फिनलैंड और आइसलैंड – आर्कटिक परिषद का निर्माण करते हैं।

आर्कटिक लगभग 4 मिलियन लोगों का घर है, जिसमें से 1/10 वहा के मूल निवासी हैं। आर्कटिक अनुसंधान तीसरे ध्रुव – हिमालय के ग्लेशियरों की पिघलने की दर का अध्ययन करने में भारत के वैज्ञानिक समुदाय की मदद करेगा।

भारत का पहला वैज्ञानिक अभियान

भारत ने वर्ष 2007 में आर्कटिक के लिए अपना पहला वैज्ञानिक अभियान लांच किया था। भारत ने नॉर्वे के स्पिट्सबर्गेन में अंतर्राष्ट्रीय आर्कटिक अनुसंधान बेस में एक अनुसंधान केंद्र ‘हिमाद्री’ की स्थापना की थी। ग्रुवबेटेट और कोंगसफोर्डेन में इसकी दो अन्य वेधशालाएँ हबी हैं।

इसकी स्थापना के बाद से 300 से अधिक भारतीय शोधकर्ताओं ने हिमाद्री स्टेशन में काम किया है। इसके अलावा, 2007 के बाद से, भारत ने आर्कटिक में 13 अभियान भेजे हैं और भारत 23 सक्रिय परियोजनाओं का संचालन कर रहा है।

Categories:

Tags: , , , , , , , , ,

Advertisement

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *