भारत में फिर से बढ़ रही है गरीबी: अध्ययन
भारत का उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Consumption Expenditure Survey – CES) हर पांच साल में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office) द्वारा आयोजित किया जाता है। लेकिन, 2011-2012 के बाद से CES डेटा जारी नहीं किया गया है। लेकिन इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि भारत में गरीबी फिर से बढ़ रही है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- CES 2017-18 (एक साल देर से) में आयोजित किया गया था, लेकिन भारत सरकार द्वारा इसे सार्वजनिक नहीं किया गया था।
- अब 2021-22 में एक नया CES आयोजित किए जाने की संभावना है, जिसके लिए 2022 के अंत तक डेटा उपलब्ध होगा।
गरीबी में वृद्धि का अनुमान कैसे लगाया गया?
कोविड-19 महामारी के प्रकोप से पहले 9 तिमाहियों से भारतीय अर्थव्यवस्था धीमी रही है। NSO के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey) से पता चलता है कि 2017-18 में बेरोजगारी बढ़कर 45 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी। इसके अलावा, 1973 से 2012 तक गरीबी गिरने का एक स्पष्ट प्रक्षेपवक्र (trajectory) है। जब से भारत ने गरीबी पर डेटा एकत्र करना शुरू किया है, गरीबी हमेशा गिरती रही हैं। लकड़ावाला गरीबी रेखा (Lakdawala Poverty Line) के अनुसार, गरीबी 1973-74 में 54.9%, 1983-84 में 44.5%, 1993-94 में 36% और 2004-05 में 27.5% तक पहुंच गई थी।
गरीबी के आकलन की पद्धति
योजना आयोग ने 2011 में सुरेश तेंदुलकर समिति की सिफारिशों के अनुसार गरीबी रेखा को बढ़ाने का फैसला किया था। इस प्रकार, 2011-12 में प्रत्येक राज्य के लिए गरीबी रेखा का विस्तार किया गया और PLFS द्वारा रिपोर्ट किए गए उपभोग व्यय का उपयोग जनसंख्या में गरीबी और गरीबों की पूर्ण संख्या का अनुमान लगाने के लिए किया गया।
गरीबी कैसे बढ़ रही है?
2017-18 के लिए लीक हुए NSO के CES डेटा के अनुरूप 2011-12 से गरीबी की घटनाओं में वृद्धि हुई है। लीक हुए आंकड़ों के अनुसार, 2012 से 2018 के बीच ग्रामीण खपत में 8% की कमी आई थी, जबकि शहरी खपत में 2% की वृद्धि हुई थी। 2019-20 तक ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गरीबी बढ़ गई थी। ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अधिक 25% से 30% की वृद्धि देखी गई।
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