भारत में ब्रॉडबैंड के परिभाषा में बदलाव किया गया

भारतीय उपभोक्ता लगातार शिकायत कर रहे हैं कि सर्विस प्रोवाइडर इंटरनेट स्पीड को लेकर झूठे वादे कर रहे हैं। इस मुद्दे को लेकर उपभोक्ताओं, नियामकों और सेवा प्रदाताओं के बीच लगातार संघर्ष मौजूद था। इस मुद्दे को हल करने के लिए, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण नियमों में बदलाव कर रहा है। हाल ही में ब्रॉडबैंड की परिभाषा बदली गई।

ब्रॉडबैंड की नई परिभाषा

नई परिभाषा के मुताबिक इंटरनेट की डाउनलोड स्पीड कम से कम 2 Mbps होनी चाहिए। यह विकसित देशों से काफी पीछे है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में यह 25 Mbps है। कनाडा में, यह 50 Mbps है।

भारत कहां पिछड़ रहा है?

सेवा प्रदाताओं पर नजर रखने के लिए ट्राई कई मापदंडों का उपयोग करता है। इसमें कनेक्शन या सिम कार्ड का एक्टिवेशन टाइम, पैकेट लॉस, अपटाइम, उपभोक्ता संतुष्टि, विलंबता आदि शामिल हैं। हालांकि, इनमें से नौ पैरामीटर ब्रॉडबैंड को परिभाषित करने में उपयोग किए जाते हैं।

ट्राई को क्या करना चाहिए?

ट्राई को उन कारकों को शामिल करना चाहिए जो ब्रॉडबैंड की स्थिति को बेहतर स्पष्टता के साथ परिभाषित करते हैं। उदाहरण के लिए, इसमें ब्रॉडबैंड की प्रकृति और प्रस्तावित योजनाओं को शामिल किया जाना चाहिए। 

इतिहास

2004 में, ब्रॉडबैंड बनने के लिए एक कनेक्शन के लिए परिभाषित डाउनलोड गति 256 Kbps थी। 2013 में यह 512 Kbps थी।

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