भारत में लौह-अयस्क

भारत असाधारण रूप से अपने लौह अयस्क के भंडार की मात्रा और गुणवत्ता दोनों में समृद्ध है। भारत में पाये जाने वाले लौह- अयस्क में मुख्य रूप से हेमेटाइट और मैग्नेटाइट शामिल हैं। हेमेटाइट में 68% तक धातु सामग्री होती है, जबकि मैग्नेटाइट में 60% तक धातु सामाग्री पायी जाती है। फिर इसके अलावा लेमोटाइट भी पाया जाता है, जिसकी गुणवत्ता हालांकि हेमेटाइट और मैगनेटाइट से काफी कम होती है। लौह अयस्क भंडार के बारे में नवीनतम आधिकारिक आंकड़े 13,000 मिलियन टन से अधिक हैं। लौह अयस्क के गुणवत्ता वाले भंडार बिहार के सिंहभूम और उड़ीसा के क्योंझर, बोनाई और मयूरभंज में स्थित हैं। इसके अलावा छतीसगढ़ के रायपुर, दुर्ग और बस्तर जिलों में भी लौह-अयस्क पाया जाता है। बस्तर की बैलाडीला खानों को जापानी सहयोग से विकसित किया गया है। जापान को लौह-अयस्क निर्यात करने के लिए अयस्क को यंत्रवत् रूप से विशाखापत्तनम ले जाया जाता है। अन्य लौह-अयस्क जमा आंध्र प्रदेश के कई जिलों, तमिलनाडु के सलेम और टिनिचिरापल्ली जिलों और कर्नाटक के चिकमगलूर और बेलारी जिलों में पाए जाते हैं। गोवा में भी लौह-अयस्क भी है जिसका पुर्तगालियों के समय से जापान में निर्यात किया जाता है। 1950-51 में लौह-अयस्क का उत्पादन 3 मिलियन टन था। 1997-98 तक यह 70 मिलियन टन की मात्रा को पार कर गया था। लौह-अयस्क के निर्यात में विशेषज्ञता वाले बंदरगाहों में विशाखापत्तनम, मार्मा गोवा, पारादीप और कलकत्ता शामिल हैं। कुद्रेमुख लौह पट्टियों का निर्माण करता है और मंगलौर बंदरगाह से निर्यात किए जाने का अनुमान है। भारतीय लौह-अयस्क की अपनी समृद्ध लौह सामग्री के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक आवश्यकता है।

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