भारत में वनों का वर्गीकरण

भारतीय विद्वानों पुरी और सेठी के अनुसार वनों का वर्गीकरण इस प्रकार है-
(1) उष्ण कटिबंधीय आर्द्र वन
इस प्रकार के वन भारत में 5 प्रकार के हैं-
1- उष्ण कटिबंधीय आर्द्र सदाबहार वन- इस प्रकार के वनों का विस्तार 250 सेमी वर्षा के विस्तार वाले वनों में मिलता है जहां पर ऊंचे और घने वृक्षों का बाहुल्य होता है। इस प्रकार के वन में तुल्सर, चप्लास, महोगनी जैसे महत्वपूर्ण वन सम्मिलित हैं और भारत में यह नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, असम, मेघालय, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में पाये जाते हैं।
2- उष्ण कटिबंधीय आर्द्र अर्द्ध सदाबहार वन- इस प्रकार के वनों का विस्तार 200 से 250 सेमी वर्षा वाले भूभागों में पाया जाता है। इन वनों से प्राप्त लकड़ी बहुमूल्य मानी जाती है जो ईंधन, इमारत उद्योग, दियासलाई और कागज उद्योग में महत्वपूर्ण होती है। इस प्रकार के वन मुख्य रूप से ओडिशा के तटीय भाग, पश्चिम बंगाल, असम घाटी और पश्चिमी घाट के पर्वतीय क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
3- आर्द्र पतझड़ वन- यह वन मुख्य रूप से मानसूनी वन हैं जिसका विस्तार पूर्वी और पश्चिमी घाट के मध्य से प्रायद्वीपीय पठार, मध्य प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल , छत्तीसगढ़ आदि प्रदेशों में पाया जाता है। उपरोक्त वन क्षेत्रों में प्राप्त होने वाले प्रमुख वृक्ष सांगवान, शीशम, चन्दन, रोजवुड, साल, महुआ, खेर आदि आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।
4- साल वन- इस प्रकार के वन का आर्थिक महत्व अधिक होता है जो वनों के कुल भाग का 12% हिस्सा हैं। इस प्रकार के वन मुख्य रूप से पूर्वी घाट, ओडिशा की पहाड़ियाँ, बघेलखंड, छोटा नागपूर का पठार आदि क्षेत्रों में पाया जाता है। इन वृक्षों की लकड़ियों से रेल की पटरियाँ और भवनों आदि का निर्माण होता है।
5- ज्वारीय वन- भारत वर्ष के समुद्र तट, दलदली भागों, नदियों के डेल्टाई भागों में पाया जाता है। इसमें गंगा नदी के डेल्टा का सुंदरवन प्रमुख है। इस प्रकार के वनों से ताड़, बेंत, केतकी और नाव बनाने हेतु लकड़ी प्राप्त होती है।
(2) उष्ण कटिबंधीय शुष्क वन-
इस प्रकार के वन 4 प्रकार के हैं-
1- शुष्क सदाबहार वन- इस प्रकार के वनों का विस्तार तमिलनाडू के समुद्र तटीय, आंध्र प्रदेश के दक्षिणी पूर्वी भाग तक है। क्योंकि मानसून के लौटते समय प्राप्त वर्षा वाले भू-भाग माने जाते हैं और इन वनों को कृषि हेतु समाप्त भी किया जाता है।
2- शुष्क पतझड़ वन- इस प्रकार के वन प्रायद्वीपीय पठार, हिमालय के तराई भाग, नदियों के किनारे, भारत के मध्यवर्ती भाग आदि में पाये जाते हैं जहां पर बांस, खेर, साल, पैंडुला, सवाई घास मुख्य उत्पादन हैं।
3- शुष्क कंटीली झाड़ी वन- भारत वर्ष में पश्चिमोत्तर भाग के रेगिस्तान तथा पश्चिम घाट के वृष्टि छाया प्रदेश प्रमुख हैं जहां पर कंटीली झाड़ियाँ, खेजड़ी, बबूल और झाऊ आदि का वृक्ष प्रमुख हैं।
4- मरुस्थलीय वन- इस प्रकार के वन पश्चिमी राजस्थान, दक्षिणी राजस्थान आदि में पाये जाते हैं। यहाँ पर पाये जाने वाले वन खेजड़ी, ताड़, बबूल, नागफनी , ताड़, खजूर आदि हैं।
(3) उपोष्ण कटिबंधीय पर्वतीय वन-
इस प्रकार के वन भारत में पालनी, नीलगिरी पहाड़ियाँ में पाये जाते हैं। इनकी ऊंचाई 1070 मीटर से 1525 मीटर तक हैं। इस प्रकार के वन हिमालय क्षेत्र 1000 से 2000मीटर की ऊंचाई पर पाये जाते हैं। इसमें ओक, चेस्टनट, एष आदि हैं। इसमें पश्चिमी हिमालय के चीड, कश्मीरी हिमालय के जैतून सम्मिलित हैं।
(4) पर्वतीय शीतोष्ण कटिबन्ध वन-
इस प्रकार के वन पर्वतों के ऊंचाई वाले भागों में पाये जाते हैं जैसे- आर्द्र शीतोष्ण जिनमें सिनकोना, वाटल, यूकेलिप्ट्स वृक्ष शामिल हैं। इसी प्रकार से कम आर्द्र शीतोष्ण वनों में सिल्वर, देवदार, पाईन आदि वृक्ष हैं। शुष्क शीतोष्ण वनों में जूनिपर वृक्ष प्रमुख हैं जो हिमालय के वृष्टि छाया प्रदेशों में पाये जाते हैं।
(5) उच्च प्रादेशिक वन
इस प्रकार के वन हिमालय क्षेत्र में 3400 मीटर और उससे भी उच्च भागों में पाये जाते हैं। इन्हें अलपाइन वन भी कहा जाता है।

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2 Comments on “भारत में वनों का वर्गीकरण”

  1. Nitesh Dhakad says:

    Very good work

    1. Vaibhav says:

      Thanks

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