मोतीलाल तेजावत (Motilal Tejawat) कौन थे?
73वें गणतंत्र दिवस परेड में गुजरात की झांकी में पाल और दाधवाव के गांवों में हुए नरसंहार को दिखाया गया। यह नरसंहार 1922 में हुआ था। इस नरसंहार के दौरान लगभग 1,200 आदिवासियों को अंग्रेजों ने बेरहमी से मार डाला था।
मुख्य बिंदु
7 मार्च, 1922 को एक आदिवासी नेता मोतीलाल तेजावत 10,000 भील आदिवासियों को संबोधित कर रहे थे। ये आदिवासी एकी आंदोलन (Eki movement) का हिस्सा थे और दाधवाव गांव (अब गुजरात में साबरकांठा जिला) से थे। सभा ने जागीरदार से संबंधित कानूनों, भू-राजस्व व्यवस्था और ब्रिटिश सरकार द्वारा शुरू किए गए रजवाड़ा से संबंधित कानूनों का विरोध किया। मेजर एच.जी. सुटन ने फायरिंग का आदेश जारी किया। आदेश का पालन करते हुए पुलिस ने 1,200 से अधिक निर्दोष लोगों को मार डाला। इस घटना को पाल दाधवाव शहीद (Pal Dadhvav Martyrs) कहा जाता है। क्षेत्र के कुएं आदिवासियों के शवों से भरे हुए थे। =
मोतीलाल तेजावत
वे हत्याकांड में बच निकले, हालाँकि उनकी जांघ में दो बार गोली लगी। गांधीजी के अनुरोध पर तेजावत भूमिगत रहे। उन्हें सात साल की जेल हुई थी। आजादी के बाद उन्होंने इस जगह का नाम “विरुभूमि” रखा। गुजरात के लोक गीतों में आज भी इस नरसंहार को याद किया जाता है।
झांकी के बारे में
झांकी का अग्रभाग आदिवासियों और उनकी लड़ाई की भावना का प्रतिनिधित्व करता है। पिछले हिस्से में नरसंहार को दर्शाया गया है।इसके साथ कलाकारों ने “गेर” नृत्य किया।
भील आदिवासी (Bhil Tribals)
भील आदिवासी पश्चिमी भारत में जातीय समूह हैं। 2013 तक, भील देश के सबसे बड़े आदिवासी समूह थे। वे राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश राज्यों में फैले हुए हैं।
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