रघुनाथ नायक, तंजावुर के शासक

तंजावुर के रघुनाथ नायक ने खुद को दक्षिण भारत में मध्ययुगीन काल के सबसे शानदार राजाओं में से एक के रूप में स्थापित किया। उन्होने शासन, स्थापत्य कला, साहित्य और कला के क्षेत्र में अपने पिता से अधिक योगदान दिया। अच्युतप्पा ने रघुनाथ को अपने शासनकाल में राजकुमार के रूप में नियुक्त किया और उन्होंने इस प्रकार राज्य के प्रशासन में पर्याप्त अनुभव प्राप्त किय। 1614 ई जब वो गद्दी पर बैठे तो अपने आप में एक बहुत ही सक्षम शासक बन चुके थे। रघुनाथ नायक धर्म या ललित-कला के लिए अपने महान योगदान के लिए जाने जाते थे। एपिग्राफिकल रिकॉर्ड ने रघुनाथ के विष्णु और शिव मंदिरों के साथ-साथ अन्य धार्मिक विश्वासों के निष्पक्ष संरक्षण को प्रमाणित किया है। कुंभकोणम में रामस्वामी मंदिरों के साथ-साथ रामेश्वरम और श्रीरंगम में राम के मंदिरों का निर्माण उनके समय के दौरान किया गया था। कुंभकोणम में कुंभेश्वर मंदिर के गोपुर का निर्माण भी उनके प्रायोजन के तहत किया गया था। रघुनाथ को उनकी भूमि के कई तीर्थस्थलों के रथोत्सव में उनके द्वारा रुचि के लिए जाना जाता है। ईसाई व्यापारियों को उनके शासनकाल के तहत नागपट्टिनम और त्रांकेबर (तारगाम्बड़ी) में बसने की अनुमति दी गई थी। रघुनाथ के शासनकाल में तंजावुर साहित्य और ललित कला का केंद्र बन गया। इसके अलावा विशेष रूप से संगीत और नृत्य का काफी हद तक विकास हुआ। वह एक विद्वान और प्रतिभाशाली कवि थे, जो संस्कृत और तेलुगु में अपनी मातृभाषा में कुशल थे। उन्होंने संस्कृत और तेलुगु भाषा में कई किताबें लिखीं। ऐसा माना जाता है कि तेलुगु कविता पारिजातपर्णा की रचना रघुनाथ ने छह घंटे के अंतराल में की थी। वाल्मीकि चरितम, रुक्मिणी-परिणय, यक्षगान, मोक्ष, नल चरित और अन्य कई रचनाएँ उन्होने की हैं। कई कवियों और विद्वान रघुनाथ के दरबार में थे जिंका राघनाथ नायक ने सम्मान किया। उनके दरबार के एक अत्यंत प्रतिभाशाली कवि रामभद्रम्बा थे। वह एक संगीतकार थे। रघुनाथ ने जयंतसेन नाम से एक नई धुन (रज्जु) बनाई और रामानंद जैसे नए ताल तैयार किए। वे वीणा के विशेषज्ञ भी थे। इसके अलावा उन्हें नृत्य में बहुत रुचि थी और उसने भरत सुधा नामक एक संस्कृतरचना भी लिखी थी। उनके दरबार में कई नर्तक आते थे जिन्हें विशिष्ट उपहारो से सम्मानित किया जाता था।

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