शिवाजी: मराठों का उदय

मुग़लकाल में दक्कन में मराठों का उदय हुआ। इसका आरम्भ 1674 ईसवी में छत्रपति शिवाजी के राज्याभिषेक के साथ हुआ। भारत में मुग़ल साम्राज्य को क्षीण करने में मराठा साम्राज्य की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। शिवाजी के शासनकाल में मराठा साम्राज्य अपने शिखर पर पहुंचा। उन्होंने आदिलशाही राजवंश और मुगलों के खिलाफ विद्रोह किया था और अपने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी।
मराठा शक्ति के उदय के कारण
मराठों ने बहमनी शासकों की सेना में शामिल होकर आवश्यक युद्ध कौशल को सीखा और बहमनी शासक की ओर से मुगलों के विरुद्ध युद्ध लड़े और उनमे विजय प्राप्त की, इससे उनके आत्मविशवास में वृद्धि हुई।
इस दौरान मराठा राष्ट्रवाद की विचारधारा का उदय हुआ। इस दौरान मराठों की एक अलग स्वतंत्र पहचान बनी।
दक्कन की भौगोलिक स्थिति से भी उन्हें लाभ मिला। मराठों ने इन पठारीय क्षेत्रों में किले बनवाए।
मराठों की उदय व सफलता का सबसे बड़ा कारण शिवाजी का नेतृत्व था। शिवाजी के नेतृत्व में मराठों ने कई युद्ध लड़े और उनमे विजय प्राप्त की।
शिवाजी
शिवाजी का जन्म अप्रैल, 1627 ईसवी में महाराष्ट्र के शिवनेरी किले में हुआ था। वे भारतीय इतिहास के महानतम शासकों में से एक थे। वे भोसले कुल से सबंधित थे। वे एक महान योद्धा तथा रणनीतिकार थे। शिवाजी को उनकी माता ने धार्मिक शिक्षा दी, उनकी माता ने उन्हें रामायण तथा महाभारत इत्यादि ग्रंथो की शिक्षा थी। यह शिक्षाएं जीवन भर उनके साथ रही। शिवाजी की शिक्षा व प्रशिक्षण का कार्य दादोजी कोंडदेव ने किया। 1645 ईसवी में पहली बार शिवाजी ने हिन्दवी स्वराज्य का उल्लेख पहली बार किया था।
राज्याभिषेक
शिवाजी का राज्याभिषेक 16 जून, 1674 ईसवी को किया गया था। उनका राज्याभिषेक रायगढ़ किले में हुआ था। शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि धारण की थी। उनका राज्याभिषेक काशी के विद्वाह विश्वेश्वर भट्ट ने किया था।
शिवाजी के सैन्य अभियान
शिवाजी ने अपना प्रथम सिने अभियान बीजापुर के विरुद्ध चलाया था। इस दौरान उन्होंने वर्ष 1643 ईसवी में सिंहगढ़ के किले पर विजय प्राप्त की थी। 1646-47 ईसवी में शिवाजी ने तोरण पर विजय प्राप्त की। तत्पश्चात कोंडाना पर 1647 ईसवी में विजय प्राप्त की। कोंडाना पर विजय प्राप्त करने के बाद शिवाजी के पिता पर बीजापुर दरबार में राजद्रोह का आरोप लगाया गया और उनके कैद कर लिया गया। अतः शिवाजी ने अपने की रिहाई के लिए कोंडाना किले को छोड़ दिया था।
शिवाजी के जीवन में पुरंदर के किले की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने पुरंदर किले पर 1654 ईसवी में विजय प्राप्त की थी। यह किला उन्होंने नीलोजी नीलकंठ से जीता था। इसके बाद उन्होंने 1656 ईसवी में जावली का किला जीता। इसके बाद उन्होंने अन्य कई किलों पर विजय प्राप्त की, इसमें बारामती, तिकोना, लौहगढ़ तथा चाकन किले प्रमुख हैं। शिवाजी ने अप्रैल 1656 ईसवी में रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाया था।
बीजापुर से संघर्ष
शिवाजी के हाथों आदिलशाह की सेना के पराजित होने से कारण आदिलशाह ने क्रुद्ध होकर 1657 ईसवी में शिवाजी को गिरफ्तार करने के लिए अफज़ल खां को भेजा। युद्ध से पहले बीजापुर की सेना ने पंढरपुर में तुलजा भवानी मंदिर तथा विठोबा मंदिर को नष्ट किया, यह हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण धर्म स्थल थे। दो महीने तक संघर्ष के बाद अफज़ल खां ने शिवाजी के पास अपना दूत भेजा और एकांत में विचार-विमर्श करने के प्रस्ताव था। संभवतः यह अफज़ल खां का षड़यंत्र था, शिवाजी ने इसे भांप लिया था। 10 नवम्बर, 1659 ईसवी में उनकी मुलाकात प्रतापगढ़ के किले के निकट हुई। इस दौरान अफज़ल खां ने शिवाजी की हत्या करने का प्रयास किया, परन्तु उसका यह प्रयास असफल रहा। शिवाजी ने बाघनख नामक हथियार से अफजल खां को मार दिया। इसके पश्चात् मराठा सेना ने बीजापुर सेना को पराजित किया। इस दौरान बीजापुर की सेना ने कोंकण, कोल्हापुर और पन्हाला के किले पर विजय प्राप्त की।
मुगलों से संघर्ष
1657 ईसवी तक शिवाजी के मुग़ल साम्राज्य से शांतिपूर्ण सम्बन्ध थे। बीजापुर अभियान के दौरान शिवाजी ने औरंगजेब को सहायता का प्रस्ताव दिया था। शिवाजी ने मुगलों के दक्कनी क्षेत्र पर आक्रमण शुरू किये। मुगलों के साथ शिवाजी का संघर्ष मार्च, 1657 ईसवी में शुरू हुआ, इस दौरान शिवाजी के दो अधिकारियों ने अहमदनगर के निकट मुग़ल क्षेत्र पर आक्रमण किया था। इसके बाद मराठों ने जुन्नार पर आक्रमण किया। इन आक्रमणों का जवाब देने के लिए शिवाजी ने नासिरी खान को भेजा, उसने अहमदनगर में शिवाजी की सेना को परास्त किया था। वर्ष 1663 ईसवी में औरंगजेब ने शाइस्ता खां को दक्कन का सूबेदार को नियुक्त किया था। शाइस्ता खां को मराठों के विरुद्ध आंशिक सफलता मिली। 15 अप्रैल, 1633 ईसवी में पूना शिविर में शाइस्ता खां पर आक्रमण किया था, इसमें उसका पुत्र फतह खां मारा गया। परन्तु उस दौरान शाइस्ता खां बच निकला।
1664 ईसवी में मराठों ने सूरत पर आक्रमण किया। शाइस्ता खां और सूरत पर आक्रमण की घटनाओं से क्रुद्ध होकर औरंगजेब ने राजा जय सिंह को 15,000 सैनिकों के साथ शिवाजी का मुकाबला करने के लिए भेजा। उसने शिवाजी के सेना को काफी क्षीण किया, उसने शिवाजी के कई महत्वपूर्ण सैन्य अधिकारियों को लालच देकर मुग़ल सेना में शामिल करवाया। 1665 ईसवी को शिवाजी को पुरंदर की संधि करने के लिए बाध्य होना पड़ा।
पुरंदर की संधि 11 जून, 1665 ईसवी को शिवाजी और जय सिंह के बीच हुई थी। इस संधि के अनुसार शिवाजी को अपने 23 किले मुगलों को देने पड़े। इसके साथ-साथ उन्हें 4 लाख स्वर्ण हूण भी मुगलों को देने पड़े। इस संधि के तहत शिवाजी ने अपने पुत्र शम्भाजी को दक्कन में मुगलों की ओर से लड़ने के लिए भेजा। शम्भाजी को 5000 का मनसब दिया गया था।
1666 ईसवी में औरंगजेब ने शिवाजी को आगरा बुलाया था। मुग़ल दरबार में शिवाजी को मनसबदारों के पीछे खड़ा किया गया, इससे शिवाजी के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचे और वे दरबार से बाहर चले गए। बाद में शिवाजी को कैद कर लिया गया, परन्तु वे किसी प्रकार कैद से भाग निकलने में सफल रहे।
बाद में मुगलों और मराठों के बीच शान्ति स्थापित हुई। औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की उपाधि दी। शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को 5000 का मनसब दिया गया, उन्हें बरार में जागीर भी प्रदान की गयी थी। कुछ समय बाद शिवाजी ने अपने खोये हुए क्षेत्र को पुनः प्राप्त करने के प्रयास किये। शिवाजी ने 1670 ईसवी में कोंडाना के किले को जीता। तत्पश्चात सूरत पर 1670 ईसवी में दूसरी बार आक्रमण किया। 1672 ईसवी में उन्होंने बीजापुर के पन्हाला दुर्ग को जीता। शिवाजी की मृत्यु 3 अप्रैल, 1680 ईसवी को रायगढ़ में हुई थी।

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