सत्र या थान की शुरुआत किसने की?
सत्र या थान मठवासी संस्थान हैं, जिनमें एक पूजा हॉल है। इन्हें नामघर भी कहा जाता है। यह एक ‘सत्राधिकार’ के नेतृत्व में होता है। इन्हें 16 वीं शताब्दी में श्रीमंत शंकरदेव के नव-वैष्णव सुधारवादी आंदोलन के हिस्से के रूप में स्थापित किया गया था। जैसा कि संत-सुधारक ने अपनी शिक्षाओं का प्रचार करने के लिए असम की यात्रा की, इन सत्रों को धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक सुधार के केंद्रों के रूप में स्थापित किया गया था। भक्तों (भिक्षुओं) को इन केंद्रों में शामिल किया गया। आज असम में कुछ 900 सत्र हैं।