सर्वोच्च न्यायालय में समान तलाक के लिए याचिका दायर की गयी

हाल ही में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने साथ सभी धर्मों के लिए तलाक और गुजारा भत्ता पर एक समान दिशा-निर्देश तैयार करने की याचिका की जांच करने पर सहमति जताई है।

मुख्य बिंदु

इस याचिका में याचिकाकर्ता ने कुछ धर्मों में भेदभाव और महिलाओं के तलाक और गुजारा भत्ता संबंधी कानूनों का तर्क दिया है। याचिकाकर्ता के अनुसार ऐसी विसंगतियां जो एक धर्म से दूसरे धर्म में भिन्न होती हैं, संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन हैं।

यह संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव के खिलाफ और सम्मान के अधिकार का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता के मुताबिक तलाक और गुजारा भत्ता पर कानून “लिंग-और धर्म-तटस्थ” होना चाहिए। इसके लिए याचिकाकर्ता द्वारा यूनिफॉर्म सिविल कोड का हवाला दिया है।

समान आचार संहिता (Uniform Civil Code)

समान आचार संहिता का उल्लेख संविधान के भाग 4 और अनुच्छेद 44 में किया गया है। इस संहिता के अनुसार समाज के सभी वर्गों को समान माना जाएगा। इस संहिता का अर्थ है कि समान नागरिक संहिता सभी पर समान रूप से लागू होगी। इस संहिता में विवाह, विरासत, तलाक, गोद लेने और संपत्ति के उत्तराधिकार जैसे क्षेत्रों को शामिल किया गया है। नागरिक संहिता इस धारणा पर आधारित है कि आधुनिक सभ्यता में धर्म और कानून के बीच कोई संबंध नहीं है।

अनुच्छेद 44

अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि पूरे देश में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता होनी चाहिए।

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