सिंधु जल संधि (IWT): भारत ने संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस भेजा
1960 में भारत सरकार और पाकिस्तान सरकार के बीच सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) पर हस्ताक्षर किए गए थे। विश्व बैंक ने संधि पर समझौता वार्ता की थी। इस संधि के अनुसार ब्यास, रावी और सतलज के पानी को भारत द्वारा नियंत्रित किया जाता है, और सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी को पाकिस्तान द्वारा नियंत्रित किया जाता है। ये सभी नदियाँ सिंधु जल प्रणाली बनाती हैं। भारत की जल प्रणाली तक 20% पहुंच है और पाकिस्तान की 80% पहुंच है। भारत के अनुसार, पाकिस्तान संधि को लेकर “आक्रामकता” करता रहा है। इसी वजह से भारत ने पाकिस्तान को संधि में संशोधन के लिए नोटिस भेजा है।
मामला क्या है?
भारत नोटिस भेजने के कारण के रूप में रतले जलविद्युत परियोजना और किशनगंगा विवाद के मुद्दों का हवाला देता है।
किशन गंगा विवाद क्या है?
2007 में, भारत ने किशन गंगा परियोजना (Kishen Ganga Project) शुरू की। यह परियोजना बिजली उत्पादन से संबंधित है। इसका उद्देश्य बिजली उत्पादन के लिए किशन गंगा के पानी को मोड़ना है। इस पर पाकिस्तान ने आपत्ति ज़ाहिर की और 2011 में परियोजना ठप हो गई।
पाकिस्तान ने आपत्ति क्यों की?
पाकिस्तान के अनुसार किशन गंगा झेलम की सहायक नदी है। सिंधु जल संधि के तहत झेलम का पानी पाकिस्तान का है। तो क्या भारतीय परियोजना इस संधि का उल्लंघन कर रही है? नहीं। सिंधु जल संधि भारत को सभी नदियों के पानी का उपयोग गैर-उपभोगात्मक उपयोगों जैसे जलविद्युत उत्पादन के लिए करने की अनुमति देती है। और भारत इस खंड का उपयोग बिजली पैदा करने के लिए किशन गंगा जल (झेलम) का उपयोग करने के लिए कर रहा था।
रतले हाइड्रोइलेक्ट्रिक विवाद क्या है?
रतले पावर प्रोजेक्ट चिनाब नदी में स्थित है। 2013 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने इसका शिलान्यास किया था। यह परियोजना 2018 में शुरू हुई जब विश्व बैंक ने भारत को पाकिस्तान द्वारा चिंता व्यक्त करने के बावजूद परियोजना के साथ आगे बढ़ने की अनुमति दी।
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