सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड (Sovereign Green Bonds) क्या हैं?
केंद्रीय बजट प्रस्तुति के दौरान, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने “ग्रीन बांड” जारी करने की घोषणा की। ये बांड हरित बुनियादी ढांचे के संसाधनों को जुटाने के लिए जारी किये जायेंगे।
ग्रीन बॉन्ड क्या होते हैं?
ग्रीन बांड ऋण साधन (debt instruments) हैं। इन बांडों को बेचकर एकत्रित धन को उन परियोजनाओं में निवेश किया जाता है जिनका पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ये बांड भारत को 2022 तक अक्षय स्रोतों से 175 गीगावाट बिजली के अपने लक्ष्य को हासिल करने में मदद करेंगे।
पूंजीगत व्यय और ग्रीन बांड
वित्त मंत्री ने घोषणा की कि सरकार ने पूंजीगत व्यय में 35.4% की वृद्धि की है। यानी वित्त वर्ष 2022-23 में भारत सरकार 7.5 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं को लागू करेगी। पूंजीगत व्यय सरकार द्वारा खर्च किया गया धन है। ज्यादातर पैसा ग्रीन प्रोजेक्ट्स में जायेगा।
भारत में ग्रीन बांड
बांड सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं में पेश किये जायेंगे। RBI के मुताबिक ग्रीन बॉन्ड की कीमत ज्यादा रही है। यह मुख्य रूप से असममित जानकारी के कारण है। RBI का यह भी कहना है कि जारी किए गए सभी बॉन्ड में ग्रीन बॉन्ड का योगदान केवल 0.7% है।
चुनौतियाँ
भारत में ग्रीन बांड की अवधि कम होती है। वास्तव में, हरित परियोजनाएं प्रतिफल लाने में अधिक समय लेती हैं। उनके पास क्रेडिट रेटिंग की कमी है। साथ ही, हरित परियोजनाओं के लिए कोई रेटिंग दिशानिर्देश नहीं हैं।
महत्व
- ग्रीन बॉन्ड बाजार तेजी से बढ़ रहा है। यह बांड भारत को लंबी अवधि के फंड तक पहुंचने में मदद करेंगे। इससे भारत में ESG जलवायु में भी सुधार होगा।
- यह बांड भारत को 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेंगे।
- यह बांड वितरण कंपनियों के वित्तीय संसाधन जुटाने में मदद करेंगे।
आगे का रास्ता
ग्रीन बांड के लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मानकों और दिशानिर्देशों में सामंजस्य होना चाहिए। उभरते हरित बाजारों की क्षमता बढ़ाई जानी चाहिए। ग्रीन बॉन्ड बाजार, लाभ और ग्रीन बॉन्ड से संबंधित अन्य प्रक्रियाओं से संबंधित ज्ञान को बढ़ाया जाना चाहिए। निवेशकों का विश्वास बढ़ाया जाना चाहिए। ग्रीन बांड को निजी क्षेत्र तक भी बढ़ाया जाना चाहिए।
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