15 फरवरी को बिहार में शहीद दिवस के रूप मनाया जायेगा
हाल ही में, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा की कि, 15 फरवरी को अब “शहीद दिवस” के रूप में मनाया जाएगा।
मुख्य बिंदु
- बिहार के मुंगेर जिले के तारापुर शहर में 90 साल पहले पुलिस द्वारा मारे गए 34 स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में 15 फरवरी को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
- इन स्वतंत्रता सेनानियों को उनका हक कभी नहीं मिला, भले ही 1919 में अमृतसर में जलियांवाला बाग के बाद ब्रिटिश पुलिस द्वारा किया गया यह सबसे बड़ा नरसंहार था।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जनवरी 2021 के मन की बात रेडियो संबोधन में तारापुर नरसंहार का उल्लेख किया था।
तारापुर नरसंहार (Tarapur Massacre)
यह घटना 15 फरवरी, 1932 को हुई, जब युवा स्वतंत्रता सेनानियों के एक समूह ने तारापुर के थाना भवन में राष्ट्रीय ध्वज फहराने की योजना बनाई थी। पुलिस को उनकी योजना की जानकारी नहीं थी लेकिन कई अधिकारी मौके पर मौजूद थे। इस दौरान पुलिस ने उन पर क्रूर लाठीचार्ज किया। लाठीचार्ज के बावजूद, स्वतंत्रता सेनानियों में से एक (गोपाल सिंह) थाना भवन में झंडा फहराने में सफल रहे। 4,000 की भारी भीड़ ने पुलिस पर पथराव किया, जिसमें नागरिक प्रशासन का एक अधिकारी घायल हो गया। इसके जवाब में पुलिस ने भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी। करीब 75 राउंड फायरिंग की गई, जिसके बाद मौके पर 34 शव मिले।
स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान
1967 में, तारापुर के विधायक बी.एन. प्रशांत (महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व वाली बिहार सरकार के दौरान) ने सबसे पहले इन स्वतंत्रता सेनानियों के लिए मान्यता की मांग की। 1984 में चंद्रशेखर सिंह की सरकार ने थाना भवन के सामने स्मारक निर्माण के लिए 100 वर्ग फुट जमीन समर्पित कर दी। उन्होंने एक संगमरमर की पट्टिका स्थापित की, जिसमें पहचाने गए स्वतंत्रता सेनानियों के नाम शामिल थे।
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