पश्चिमी घाट में Muraingrass की नई प्रजाति की खोज की गयी

हाल ही में गोवा के पश्चिमी घाट के पठार में वैज्ञानिकों द्वारा भारतीय मुरेनग्रास की एक नई प्रजाति की पहचान की गई है। भारतीय मुरेनग्रास चारे की तरह पारिस्थितिक और आर्थिक महत्व के लिए जाना जाता हैं। यह प्रजाति कठोर परिस्थितियों और कम पोषक तत्व की उपलब्धता में जीवित रहने के लिए अनुकूलित है। यह हर साल मानसून में खिलता है।

मुख्य बिंदु

विश्व भर में 85 प्रजातियाँ इस्चेमम से सम्बंधित हैं। 85 प्रजातियों में से, 61 प्रजातियां विशेष रूप से भारत में पाई जाती हैं। पश्चिमी घाट में इस क्षेत्र में 40 प्रजातियाँ पायी जाती हैं। शोधकर्ताओं की टीम ने गोवा के पश्चिमी घाट के पठारों से Ischaemumjanarthanamii  नाम की प्रजाति की खोज की है। इस नई प्रजाति का पहला संग्रह 2017 के मानसून सीज़न में पाया गया था।

Ischaemumjanarthanamii

यह भगवान महावीर राष्ट्रीय उद्यान, गोवा के निम्न ऊंचाई वाले पठारी  क्षेत्रों में उगता है। यह वनस्पति चरम जलवायु परिस्थितियों जैसे कि सूखा और कम पोषक तत्वों वाली मिट्टी के संपर्क में है। हालांकि, इस प्रजाति ने कठोर परिस्थितियों से बचने के लिए अनुकूलन किया है।

Ischaemum

यह घास परिवार में पौधों की एक जीनस है। ये आमतौर पर कई देशों में उष्णकटिबंधीय और अर्ध-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। इसकी कई प्रजातियों को मुरेनग्रास के नाम से भी जाना जाता है।

Ischaemum rugosum

इसे सरमोलाग्रास के नाम से भी जाना जाता है। यह फूल वाला पौधा जीनस  Ischaemum के घास परिवार Poaceae के अंतर्गत आता है। यह पौधा एशिया के उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में आमतौर पर पाया जाता है। यह दलदल और अन्य नमीयुक्त क्षेत्रों में उगता है। यह 1 मीटर की ऊँचाई तक बढ़ सकता है।

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