गंगा के मैदानी क्षेत्र में एरोसोल के कारण अधिक वर्षा हो रही है : अध्ययन
हाल ही में शोधकर्ताओं की एक टीम ने पाया है कि ब्लैक कार्बन और धूल जैसे एरोसोल के कारण हिमालयी क्षेत्रों की तलहटी में अधिक वर्षा हो रही है।
मुख्य बिंदु
ब्लैक कार्बन और धूल सहित एरोसोल गंगा के मैदानी क्षेत्र को दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में से एक बनाते हैं। हालिया अध्ययन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी राउरकेला, लीपज़िग इंस्टीट्यूट फॉर मेटियोरोलॉजी (LIM), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मद्रास, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कानपुर और यूनिवर्सिटी ऑफ लीपजिग, जर्मनी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।
गौरतलब है इन शोधकर्ताओं की टीम को भारत सरकारविज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग के जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम के तहत समर्थन मिला है। इस टीम ने हिमालयी क्षेत्र में उच्च वर्षा की घटनाओं में एयरोसोल की भूमिका पर प्रकाश डाला है।
अध्ययन के निष्कर्ष
इस अध्ययन में पाया गया है कि कणों के उत्सर्जन (particulate emissions) में बादल प्रणाली के भौतिक और गतिशील गुणों को बदलने की क्षमता है। कण उत्सर्जन या एरोसोल अत्यधिक प्रदूषित शहरी क्षेत्रों के भौगोलिक क्षेत्रों में वर्षा की घटनाओं को बढ़ा सकते हैं।
गंगा के मैदानी क्षेत्र
गंगा के मैदानी क्षेत्र को सिंधु-गंगा और उत्तर भारतीय नदी का मैदान भी कहा जाता है। यह मैदान उत्तरी पर्वत और प्रायद्वीपीय पठार के बीच स्थित है। यह मैदान तीन नदियों गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र और इन नदियों की सहायक नदियों द्वारा निर्मित है। इस मैदान का क्षेत्रफल लगभग 7,00,000 वर्ग किमी का क्षेत्र है, यह उत्तरी और पूर्वी भारत के अधिकतर हिस्से को कवर करता है।
Categories: पर्यावरण एवं पारिस्थिकी करेंट अफेयर्स
Tags:Indian Institute of Technology Kanpur , Indian Institute of Technology Madras , Indo-Gangetic Plain , Leipzig Institute for Meteorology (LIM) , National Institute of Technology Rourkela , एरोसोल , गंगा के मैदानी क्षेत्र , प्रदूषण