गुरु रविदास कौन थे?
देश भर में 27 फरवरी, 2021 को भक्ति आंदोलन संत गुरु रविदास जयंती मनाई गयी।
मुख्य बिंदु
- गुरु रविदास ने भारतीय संस्कृति विशेषकर उत्तर भारत में अपने महान प्रभाव छोड़ा है।
- उन्हे भारत से जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रयासों के लिए जाना जाता है।
- वे संत कबीरदास के समकालीन हैं जबकि मीराबाई उनकी शिष्या थीं।
- रविदासिया धर्म का पालन करने वाले लोगों के बीच रविदास जयंती का एक विशेष महत्व है।
- उन्हें सिख धर्म में भी महत्व मिलता है, रविदास की 40 कविताएँ सिख धर्म के पवित्र आदि ग्रंथ में शामिल हैं।
गुरु रविदास
वह भक्ति आंदोलन के एक भारतीय कवि-संत थे। उन्होंने 15वीं से 16वीं शताब्दी में रविदासिया धर्म की स्थापना की। उनका राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के क्षेत्र में एक गुरु के रूप में सम्मान है। वह एक समाज सुधारक और आध्यात्मिक संत थे। हिंदू धर्म के भीतर दादूपंथी परंपरा के पंच वाणी पाठ में रविदास की कविताओं को भी शामिल किया गया है। उन्होंने जाति और लैंगिक भेद-भाव के सामाजिक विभाजन को हटाने पर भी बल दिया।
प्रारंभिक जीवन
रवि दास जी को रैदास के नाम से भी जाना जाता था। उनका जन्म वाराणसी के पास उत्तर प्रदेश के सीर गोवर्धनपुर गाँव में हुआ था। उनके जन्मस्थान को अब श्री गुरु रविदास जन्म स्थान कहा जाता है।
भक्ति आंदोलन
यह आस्तिक भक्ति प्रवृत्ति है। इस आंदोलन ने बाद में सिख धर्म के गठन में एक वास्तविक उत्प्रेरक के रूप में काम किया। यह आंदोलन आठवीं शताब्दी के दक्षिण भारत में उत्पन्न हुआ था और उत्तर की ओर फैल गया। यह 15वीं शताब्दी में पूर्व और उत्तर भारत में फैला। यह देवी-देवताओं के इर्द-गिर्द विकसित हुआ।
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