हिन्दी साहित्य का आदिकाल
हिंदी साहित्य का आदि काल 1400 ईस्वी से पहले का समय है। उस समय हिंदी साहित्य कन्नौज, दिल्ली, अजमेर औरमध्य भारत तक बहुत परिपक्व हो गया था। दिल्ली पर तब पृथ्वीराज चौहान (1168-1192 ई.) का शासन था। पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज रासो लिखी थी जिसे हिंदी साहित्य के इतिहास में पहली और बेहतरीन कृतियों में से एक माना जाता है। कन्नौज के अंतिम राठौर शासक जयचंद थे, जिन्होंने संस्कृत साहित्य को अधिक संरक्षण दिया। जयचंद के दरबारी कवि हर्ष ने तब तक अपनी प्रमुख काव्य रचना लिखी थी। महोबा के राज्यकवि जगनायक (जगनिक) और अजमेर के नाल्हा हिंदी साहित्य के इस काल के अन्य प्रमुख साहित्यकार थे। पृथ्वीराज चौहान की मुहम्मद गोरी द्वारा हार के बाद अधिकांश साहित्यिक कृतियाँ बर्बाद और क्षतिग्रस्त हो गईं। समकालीन काल में इस काल के बहुत कम ग्रंथ या पांडुलिपियां उपलब्ध हैं और उनकी प्रामाणिकता भी बहुत संदेह की है। हिंदी साहित्य में आदि काल 10वींशताब्दी के मध्य से 14वीं शताब्दी तक रहा। इस काल की कविताओं को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है, जिनमें मूल रूप से शामिल हैं: अपभ्रंश काव्य, वीर काव्य और विविध काव्य। अपभ्रंश कविता में सिद्ध साहित्य (750-1200), नाथ साहित्य और जैन साहित्य शामिल हैं। सिद्ध साहित्य लोकप्रिय भाषा में लिखा गया था। सिद्ध वज्रयान से संबंधित थे। कवि गोरखनाथ और उनके अनुयायी 7वीं और 14वीं शताब्दी के बीच नाथ साहित्य की रचना करने वाले प्रमुख थे। इन रचनाओं ने संत (रहीम, कबीर और अन्य द्वारा लोकप्रिय भक्ति साहित्य) साहित्य पर अत्यधिक प्रभाव डाला। हिंदी साहित्य के विकास की इस अवधि के दौरान, स्वयंभू, सोम दत्त सूरी, शारंग धर और नल्ला सिंह जैसे जैन कवियों ने चरित काव्यों की रचना की थी।
हिंदी साहित्य में प्रारंभिक काल या आदि काल आक्रमणों का युग था। इसलिए ज़्यादातर कृतियाँ वीरता पर आधारित हैं। पृथ्वीराज रासो (चंद बरदाई), खुमान रासो (दलपतिविजय), बीसलदेव राव (नरपति नाल्हा) और परमल रासो (जग्निक) हिंदी साहित्य में इस चरण की प्रमुख कृतियाँ हैं। भक्ति काल की शुरुआत के दौरान रामानंद और गोरखनाथ जैसे कई संत-कवि प्रसिद्ध हो गए थे। विद्यापति की कुछ मैथिली कृतियों में हिंदी और उसके साहित्य का सबसे प्रारंभिक रूप भी देखा जा सकता है।