मध्यकालीन असमिया साहित्य
मध्यकालीन असमिया साहित्य की अवधि 17 वीं शताब्दी से शुरू होकर 19 वीं शताब्दी तक थी। असमिया साहित्य में यह अवधि अहोम कोर्ट के गद्य इतिहास (बुरानजी) के शासनकाल का था। पहले अहोम की भाषा तिब्बती-चीनी थी जो बाद में असामिया हो गई।
असमिया भाषा अनिवार्य रूप से अवधारणा और सामग्री में आधुनिक है। ज्योतिष, चिकित्सा, गणित, संगीत, नृत्य आदि पर आसामिया भाषा में लिखा था। असमिया बुरानजी साहित्य पूरे भारत में न केवल इसलिए अद्वितीय है क्योंकि उनमें अमूल्य ऐतिहासिक सामग्री होती है, बल्कि इसलिए कि वे एक बेजोड़ साहित्यिक शैली का प्रतिनिधित्व करते हैं। 15 वीं शताब्दी के दौरान असम में भक्ति आंदोलन की ऊंचाई के दौरान कवि शंकर देव (1449-1568) ने संस्कृत से कई अनुवाद किये और खुद के ग्रंथ भी लिखे। इनमें कीर्तन-घोष, भोक्ति-प्रदीपा, रुक्मिनी-हराना, हरिश्चंद्र-अपख्यान आदि शामिल हैं। मध्य असमिया साहित्य युग के दौरान महाकाव्यों और पुराणों के अनुवादों को सुसज्जित किया गया था, साथ ही कविताओं और कहानियों पर भी कार्य किया गया।