भारतीय संविधान की प्रस्तावना
भारतीय संविधान की प्रस्तावना संविधान की मूल संरचना और भावना को दर्शाती है। यह अपने लिखित शब्दों में पूरे संविधान का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें संविधान की बुनियादी विशेषताएं शामिल हैं और इस प्रकार इसे एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। भारत के संविधान की प्रस्तावना अपरिवर्तनीय है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है-
“हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्त्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये तथा इसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिये तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिये दृढ़ संकल्पित होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर, 1949 ई. को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”
यह संविधान के साथ 1950 में लागू हुआ। 42वें संशोधन द्वारा ‘समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़े गए। उसी संशोधन ने राष्ट्र की एकता को राष्ट्र की एकता और अखंडता में बदलने में योगदान दिया।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना के अनुसार, ‘संप्रभु’ शब्द देश में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका अर्थ सर्वोच्च या स्वतंत्र है और भारत आंतरिक और बाह्य रूप से संप्रभु है और किसी भी विदेशी शक्ति के नियंत्रण से मुक्त है। ‘समाजवादी’ शब्द का भी महत्व है क्योंकि इसका तात्पर्य सामाजिक और आर्थिक समानता से है। यह शब्द आपातकाल के दौरान 1976 के 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था। इसके अलावा सामाजिक समानता केवल जाति, रंग, पंथ, लिंग, धर्म या भाषा के आधार पर भेदभाव की अनुपस्थिति की पहचान करती है। इसके अलावा, सामाजिक समानता की समान स्थिति और अवसर हैं।