21 राज्यों में मनरेगा (MGNREGS) में फण्ड की कमी : मुख्य बिंदु
“महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना” के वित्तीय विवरण के अनुसार, 21 राज्यों में इस योजना के लिए पर्याप्त धन नही है।
मुख्य बिंदु
- वित्तीय वर्ष 2021 के आधे समय काल में ही इस योजना की धनराशि समाप्त हो गई है, और अगले संसदीय सत्र के शुरू होने तक क्षतिपूर्ति के लिए अनुपूरक बजटीय आवंटन प्रदान नहीं किया जाएगा।
- यह 8,686 करोड़ रुपये का नेगेटिव नेट बैलेंस दिखा रहा है।
इसका क्या मतलब है?
धन की कमी का मतलब है कि, मनरेगा श्रमिकों के भुगतान और सामग्री की लागत में देरी होगी,।
धन की कमी क्यों है?
मनरेगा एक मांग आधारित योजना है। यह जरूरतमंद ग्रामीण परिवार को 100 दिनों के अकुशल काम की गारंटी देता है। कोविड-19 महामारी के बीच 2020 में लॉकडाउन अवधि के दौरान इस योजना को उच्चतम बजट 1.11 लाख करोड़ रुपये दिया गया था। इस फंड का इस्तेमाल 11 करोड़ श्रमिकों के लिए महत्वपूर्ण जीवन रेखा प्रदान करने के लिए किया गया था। लेकिन केंद्रीय बजट 2021-22 में, इस योजना को 73,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, क्योंकि देशव्यापी लॉकडाउन समाप्त हो गया था। केंद्र ने यह भी घोषणा की कि पैसा खत्म होने पर अनुपूरक बजट आवंटित किया जाएगा। 29 अक्टूबर तक, बकाया भुगतान सहित कुल खर्च 79,810 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु सहित 21 राज्य नकारात्मक शुद्ध संतुलन दिखा रहे हैं।
मनरेगा (MGNREGA)
मनरेगा दुनिया भर में सबसे बड़े कार्य गारंटी कार्यक्रमों में से एक है। यह योजना ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिन का रोजगार प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य अधिकार-आधारित ढांचे का उपयोग करके गरीबी के कारणों का समाधान करना है। इस योजना के तहत, मजदूरी का भुगतान वैधानिक न्यूनतम मजदूरी के अनुसार किया जाता है जो कि न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के तहत कृषि मजदूरों के लिए निर्दिष्ट है।
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इस तरह का स्थिति रही तो मनरेगा में कोई काम के लिये नहीं आएगा