विमुद्रीकरण (Demonetisation) की पांचवीं वर्षगांठ: आर्थिक प्रभाव
भारत में 8 नवंबर, 2021 को विमुद्रीकरण/नोटबंदी की पांचवीं वर्षगांठ थी। 2016 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विमुद्रीकरण की घोषणा की गई थी।
पृष्ठभूमि
- इस कदम के साथ, पूरे देश में 500 और 1,000 रुपये के नोटों को कानूनी मुद्रा (legal tender) के रूप में वापस ले लिया गया था।
- इस कदम का मकसद काले धन को खत्म करना था।
विमुद्रीकरण क्या है?
विमुद्रीकरण कानूनी मुद्रा के रूप में मुद्रा की स्थिति को वापस लेने का एक कार्य है। यह तब होता है जब किसी देश की राष्ट्रीय मुद्रा बदली जाती है। इसके तहत, मुद्रा के वर्तमान रूप या रूपों को प्रचलन से हटा दिया जाता है और उन्हें नए नोटों या सिक्कों से बदल दिया जाता है।
विमुद्रीकरण के उद्देश्य क्या हैं?
विमुद्रीकरण निम्नलिखित उद्देश्य से किया जाता है:
- अवैध लेनदेन के लिए उच्च मूल्य के नोटों के उपयोग को हतोत्साहित करना। यह काले धन के उपयोग पर अंकुश लगाता है।
- वाणिज्यिक लेनदेन के डिजिटलीकरण को प्रोत्साहित करना और अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाना। इस प्रकार, यह सरकारी कर राजस्व को बढ़ाता है।
विमुद्रीकरण के प्रभाव
- 4 नवंबर 2016 को जनता के पास मुद्रा लगभग 17.97 लाख करोड़ रुपये थी, जो विमुद्रीकरण के बाद जनवरी 2017 में घटकर 7.8 लाख करोड़ रुपये रह गई।
- विमुद्रीकरण के कारण अर्थव्यवस्था में तरलता की कमी हुई। विमुद्रीकरण के बाद, मांग गिर गई, व्यवसायों को संकट का सामना करना पड़ा और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि घटकर 1.5% रह गई।
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