जम्मू और कश्मीर की वास्तुकला

जम्मू और कश्मीर की वास्तुकला में श्रीनगर, कश्मीर, जम्मू और लद्दाख की वास्तुकला शामिल है। जम्मू और कश्मीर की वास्तुकला पवित्र मंदिरों, मस्जिदों, उद्यानों और संग्रहालयों का एक दिलचस्प संयोजन है। जम्मू और कश्मीर में इस्लामी, बौद्ध और हिंदू दोनों वास्तुकलाओं का एक जिज्ञासु अंतर्संबंध है। जम्मू और कश्मीर में संस्कृति का एक समामेलन है। मुगलों के स्थापत्य कौशल और हिंदू वास्तुकला के विस्तृत विवरण ने जम्मू और कश्मीर वास्तुकला की विस्मयकारी प्रकृति में योगदान दिया है।
सम्राट अशोक के अधीन कश्मीर भी बौद्ध संस्कृति के प्रभाव में फला-फूला। जम्मू और कश्मीर में कई संस्कृतियों का मिश्रण है जिसका इसकी वास्तुकला पर प्रभाव पड़ा है। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान जब सम्राट अशोक ने भारत पर शासन किया, कश्मीर उसके शासन में आया और बौद्ध संस्कृति का विकास हुआ। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के दौरान सिकंदर यूनानी संस्कृति को साथ लेकर आया। यूनानी संस्कृति ने भी उस युग की स्थापत्य कला को प्रभावित किया, लेकिन उस काल की कोई इमारत नहीं बची है। इसकी एक झलक हिंदू काल में बने मंदिरों में देखी जा सकती है। जम्मू और कश्मीर की हिंदू वास्तुकला को पत्थर की संरचनाओं द्वारा चिह्नित किया गया था। चौदहवीं शताब्दी के दौरान इस्लाम का प्रसार हुआ और चारों तरफ मस्जिदें बन रही थीं। मस्जिदों को लकड़ी से बनाया गया था। यह लकड़ी की मस्जिद जम्मू और कश्मीर की एक विशिष्ट वास्तुकला है। मुसलमानों ने हिंदू मंदिरों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक स्थापत्य शैली को अपनाया। उस युग की एक अन्य विशेषता यह उद्यान है, जिसे 1586 में सम्राट अकबर द्वारा बनवाया गया था, जब उसने कश्मीर पर शासन किया था। जम्मू और कश्मीर के मंदिर, मस्जिद और उद्यान ज्यादातर श्रीनगर में केंद्रित हैं।
मार्तंड मंदिर आठवीं शताब्दी ईस्वी के मध्य में राजा ललितादित्य द्वारा बनाया गया था। बुनियार का विष्णु मंदिर हिंदू मंदिर वास्तुकला का एक और उदाहरण है। श्रीनगर की इस्लामी वास्तुकला श्रीनगर की जामी मस्जिद शुक्रवार की मस्जिद में मानी जाती है। जामी मस्जिद कश्मीर की सभी लकड़ी की मस्जिदों में सबसे शानदार और आकर्षक है। इस मस्जिद की स्थापत्य शैली कश्मीर के हिंदू मंदिरों से अपनाई गई है। जम्मू में अमर महल महल वास्तुकला का एक आकर्षक नमूना है।

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