माउंट एवरेस्ट पर सबसे ऊंचा ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहा है : अध्ययन

हाल ही में वैज्ञानिकों ने पाया कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर सबसे ऊंचा ग्लेशियर तेजी से पिघल रहा है। यह ग्लेशियर साउथ कोल ग्लेशियर (South Col Glacier) है और पिछले 25 वर्षों में यह ग्लेशियर 54 मीटर मोटाई खो चुका है।

मुख्य बिंदु 

साउथ कोल ग्लेशियर 7,906 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह ग्लेशियर तेजी से पतला हो रहा है। इस ग्लेशियर के पिघलने को प्रेरित करने वाले प्रमुख जलवायु कारक तेज हवाएं और गर्म तापमान हैं। 1990 से 2020 के बीच जिस बर्फ को बनने में 2000 साल लगे, वो पिघल चुकी थी। ग्लेशियर पर बर्फ की परत मिट गई है। इसने कुछ क्षेत्रों में अंतर्निहित काली बर्फ को उजागर कर दिया है। इससे पिघलन और तेज हो रही है। काली बर्फ, पर्वत की सतह पर परत है। यदि काली बर्फ पिघलती है, तो पर्वत सूर्य के संपर्क में आ जाता है। पर्वत बर्फ की तुलना में अधिक समय तक अधिक ताप धारण करता है। इससे पिघलने में और तेजी आएगी। इस क्षेत्र की जलवायु स्थिर है। क्षेत्र की जलवायु परिस्थितियों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। यह ग्लेशियर वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण पिघल रहा है।

अनुमान

एक अरब से अधिक लोग पीने के पानी के लिए हिमालय के पहाड़ों पर निर्भर हैं। अगर ग्लेशियर साउथ कोल की तरह पिघल रहे हैं, तो सिंचाई और पीने के लिए पानी उपलब्ध कराने की उनकी क्षमता गिर जाएगी।

पर्वतारोहियों पर प्रभाव

यदि ग्लेशियर का पिघलना बढ़ता है तो पर्वतारोहियों को और अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। इससे और अधिक आधार (bedrock) उजागर किया जाएगा। मोटी बर्फ की तुलना में इस चट्टान पर चढ़ना अत्यधिक चुनौतीपूर्ण है।

आगे का रास्ता

अध्ययन से पता चलता है कि माउंट एवरेस्ट ग्लेशियर के पिघलने से भारत और अन्य हिमालयी देशों में खराब जलवायु प्रभाव पड़ रहा है। मानसून पर इसका खासा असर पड़ सकता है। इससे हिमस्खलन भी बढ़ जायेगा। अभी और जल स्रोत सूख रहे हैं।

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