तुगलक वंश

गयासुद्दीन तुगलक (1320-25 ईसवी)
गयासुद्दीन तुगलक ने भारत में तुगलक वंश की स्थापना की। उसने 1320 ईसवी से ले कर 1325 ईसवी तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। उसने अपने शासनकाल में तुगलकाबाद नगर की स्थापना की। वह एक शक्तिशाली व महत्वकांक्षी शासक था, उसने दक्षिण में भी अपना नियंत्रण स्थापित किया था। दक्षिण भारत के सैन्य अभियानों का नेतृत्व उसके पुत्र जुना खां ने किया था।
गयासुद्दीन तुगलक ने अपने शासनकाल में राजस्व सम्बन्धी कई महत्वपूर्ण सुधार किये। उसने राजस्व की दर को एक तिहाई निश्चित किया। जबकि अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में यह दर 50% थी। गयासुद्दीन तुगलक ने अपने कार्यकाल में जन कल्याण के लिए कई कार्य किये। उसने सल्तनत शासकों में से सबसे पहले नहरों का निर्माण करवाया।
गयासुद्दीन तुगलक की धार्मिक नीति अन्य मुस्लिम शासकों की अपेक्षा उदार थी। हिन्दुओं के प्रति उसने उदारता की नीति अपनाई। उसके शासनकाल की एक महत्वपूर्ण घटना डाक व्यवस्था की स्थापना है, गयासुद्दीन तुगलक ने डाक व्यवस्था की स्थापना की थी। 1325 ईसवी में गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु हो गयी।
मुहम्मद-बिन-तुगलक (1325-51 ईसवी)
गयासुद्दीन तुगलक के बाद मुहम्मद-बिन-तुगलक दिल्ली सल्तनत का शासक बना। वह गयासुद्दीन तुगलक का सबसे बड़ा पुत्र था। गयासुद्दीन ने मुहम्मद को दक्कन के अभियान के लिए भेजा था, इस दौरान वहां का शासक काकतीय वंश का राजा प्रतापरूद्र था। 1325 ईसवी में गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के बाद मुहम्मद बिन तुगलक शासक बना।
मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने शासनकाल में राजस्व व्यवस्था में कई परिवर्तन किये, उसने विभिन्न क्षेत्रों के वित्तीय पहलुओं के अध्ययन के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की। मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में मोरोक्कन यात्री इब्न बतूता आया था। उसने मुहम्मद-बिन-तुगलक के दरबार में कई रचनाये रची।
1325 से लेकर 1351 ईसवी तक मुहम्मद-बिन-तुगलक को अपने शासनकाल में 22 बड़े विद्रोहों का सामना करना पड़ा। मुहम्मद-बिन-तुगलक ने वारंगल, मदुरै और वर्तमान कर्नाटक तक के क्षेत्रों पर अपना अधिकार स्थापित किया था। वर्ष 1328 ईसवी में मुहम्मद-बिन-तुगलक ने अपनी राजधानी दिल्ली से दौलताबाद स्थानांतरित की थी। इसका मुख्य उद्देश्य दक्कन के क्षेत्रों को भी सुचारू रूप से नियंत्रित करना था।
मुहम्मद-बिन-तुगलक ने अपने कार्यकाल में कई महत्वकांक्षी योजनायें शुरू की, परन्तु उसे अधिक सफलता नहीं मिली मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने शासनकाल में राजस्व व्यवस्था में कई परिवर्तन किये, उसने विभिन्न क्षेत्रों के वित्तीय पहलुओं के अध्ययन के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की। मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में मोरोक्कन यात्री इब्न बतूता आया था। उसने मुहम्मद-बिन-तुगलक के दरबार में कई रचनाये रची।
मुहम्मद-बिन-तुगलक की महत्वपूर्ण योजनायें

योजना विवरण
भू-राजस्व वृद्धि- मुहम्मद-बिन-तुगलक ने दोआब क्षेत्र में भू-राजस्व में वृद्धि की। और इस दौरान दोआब में अकाल की स्थिति थी। इस कारण किसान लगान देने में असमर्थ थे। परन्तु लगान वसूलने वाले अधिकारियों ने कठोरता से लगान प्राप्त करने के प्रयास किया। इसके परिणामस्वरूप किसानों ने खेती बंद कर दी थी।
राजधानी स्थानांतरण- दक्कन क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित करने के उद्देश्य से मुहम्मद-बिन-तुगलक ने दौलताबाद को अपनी नई राजधानी बनाया।लोगों को दौलताबाद जाने के लिए विवश किया गया। दौलताबाद का मूल नाम देवगिरी था।बाद में दौलताबाद इस्लामिक संस्कृति का प्रमुख केंद्र बन गया था। कई विद्रोहों के कारण दक्कन के क्षेत्रों से दिल्ली सल्तनत का नियंत्रण समाप्त हो गया तथा दौलताबाद में राजधानी का कोई औचित्य नहीं रहा।दक्कन में असफल होने के पश्चात मुहम्मद-बिन-तुगलक ने राजधानी को पुनः दिल्ली में स्थापित किया।
मुद्रा व्यवस्था- मुहम्मद-बिन-तुगलक ने पीतल व कांसे की मुद्रा जारी की थी। ऐसा करने वाला वह प्रथम शासक था। इस दौरान कांसे और पीतल की मुद्रा का मूल्य चांदी के बराबर निश्चित किया गया था। इस दौरान नकली सिक्के बड़ी मात्रा में प्रचलन में आये, जिससे सरकारी राजकोष को काफी नुकसान हुआ।
खुरासान अभियान –यह अभियान खुरासान के शासक अबू सैयद के विरुद्ध था। उसका उद्देश्य गजनी तथा काबुल पर नियंत्रण स्थापित करना था। परन्तु यह योजना असफल रही। इस योजना के लिए अत्याधिक व्यय किया गया था।
कराचिल अभियान- मुहम्मद-बिन-तुगलक ने काँगड़ा और कुमाऊ की पहाड़ी रियासतों पर भी आक्रमण किया था। आरंभिक सफलता के बाद उसकी सेना की बुरी हार हुई और उसे काफी नुकसान उठाना पड़ा।

कृषि सुधार
मुहम्मद-बिन-तुगलक ने ‘दीवान-ए-कोही’ की स्थापना की थी, इस विभाग का कार्य कृषि सुधार सम्बन्धी काम करना था। इस विभाग द्वारा कृषि सुधार और विस्तार के कार्य किये जाते थे। इस कार्य के लिए जिन अधिकारियों की नियुक्ति की गयी थी, उनमे से अधिकतर अधिकारी योग्य थे। इसके परिणामस्वरुप यह योजना भी असफल रही। मुहम्मद-बिन-तुगलक ने अकाल संहिता बनवाई थी। उसने किसानों को कृषि कार्य के लिए ऋण भी प्रदान किया था, इस ऋण को तकावी कहा जाता था। उसने पैमाइश के आधार पर भू-राजस्व की दर को निश्चित किया। इसने ठेके पर भू-राजस्व की वसूली की प्रथा मुकाता प्रथा को बढ़ावा दिया।
धार्मिक नीति
मुहम्मद-बिन-तुगलक ने सख्ती से इस्लाम का पालन किया परन्तु उसने अपने प्रशासन में हिन्दुओं को भी शामिल किया। वह जैन विद्वानों मुख्यतः जिनप्रभु सूरी और जाम्बूजी से चर्चा करता था। उसने जैन विद्वान् राजशेखर को संरक्षण प्रदान किया था। मुहम्मद-बिन-तुगलक ने दिल्ली में शेख निजामुद्दीन औलिया के मकबरे को निर्मित करवाया था।
वह तर्कवादी स्वभाव का था, इस कारण उल्लेमा से उसके सम्बन्ध अच्छे नहीं थे। शेख नासिरुद्द्दीन चिराग-ए-दिल्ली उसके प्रमुख विरोअधि थे, कई मुस्लिम इतिहासकारों उसका वर्णन अधर्मी के रूप में किया है। विभिन्न धर्म समूहों का समर्थन प्राप्त करने के लिए उसने खलीफा से मान पत्र प्राप्त किया। तत्पश्चात उसने सिक्कों पर भी खलीफा का नाम अंकित करवाया।
इब्न बतूता के अनुसार मुहम्मद-बिन-तुगलक ने सोने का सिक्का जारी किया था, इसे दीनार कहा जाता था। मुहम्मद-बिन-तुगलक के सिक्कों पर सुल्तान को ईश्वर की परछाई युक्त लेख अंकित किये जाते थे।
सांस्कृतिक योगदान
मुहम्मद-बिन-तुगलक चिकित्सा विज्ञान और साहित्य में काफी रुचि रखता था। वह फारसी, अरबी, तुर्की और संस्कृत भाषा का ज्ञाता था। मोरक्को का प्रसिद्ध यात्री इब्न बतूता उसके दरबार में आया था। मुहम्मद-बिन-तुगलक ने उसे दिल्ली का क़ाज़ी नियुक्त किया था। वर्ष 1342 ईसवी में इब्न बतूता, मुहम्मद-बिन-तुगलक का दूत बन कर चीन गया था। इब्न बतूता ने मुहम्मद-बिन-तुगलक के दरबार में कई रचनाओं की रचना की। उसकी पुस्तक ‘रेहला’ से मुहम्मद-बिन-तुगलक के सम्बन्ध में उपयोगी जानकारी मिलती है।
मुहम्मद-बिन-तुगलक के दरबार में बरनी और बद्र-ए-चाच जैसे विद्वान् मौजूद थे।जियाउद्दीन बरनी ने तारीख-ए-फिरोजशाही तथा फतवा-ए-जहाँदारी की रचना की थी। बद्र-ए-चाच ने शाहनामा तथा दीवान-ए-चाच की रचना की थी।
प्रमुख विद्रोह
मुहम्मद-बिन-तुगलक के शासनकाल में 22 विद्रोह हुए। इन विद्रोह के कई कारण थे। उसकी धार्मिक नीति के कारण उल्लेमा वर्ग असंतुष्ट था। 1327 ईसवी में सागर के इक्तादर बहाउद्दीन गुरशास्प ने सर्वप्रथम विद्रोह किया। 1334-35 ईसवी में माबर में अहसान शाह ने विद्रोह किया। उसके बाद 1340-41 में बंगाल में विद्रोह हुआ। इस दौरान कई राज्य दिल्ली सल्तनत की अधीनता से स्वतंत्र हुए। इसी कड़ी में दक्षिण भारत के अधिकतर राज्य सल्तनत शासन से स्वतंत्र हुए। विजयनगर 1336 ईसवी में स्वतंत्र हुआ। जबकि बहमनी 1347 ईसवी में स्वतंत्र हुआ। 1340 ईसवी में अवध के नवाब आइन-उल-मुल्तानी ने विद्रोह किया। गुजरात के तगी विद्रोह में मुहम्मद-बिन-तुगलक की मृत्यु हुई।
फिरोज शाह तुगलक (1351-88 ईसवी)
फिरोजशाह तुगलक, मुहम्मद-बिन-तुगलक का चचेरा भाई था। मुहम्मद-बिन-तुगलक की मृत्यु के बाद फिरोजशाह तुगलक दिल्ली सल्तनत का शासक बना। उसने 1351 ईसवी से लेकर 1388 ईसवी तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। उसके शासन के आरम्भ में दिल्ली सल्तनत में अव्यवस्था का माहौल व्याप्त था। फिरोज शाह ने जनकल्याण और परोपकारिता जैसे सामाजिक कार्य किये। उसके शासनकाल के बारे में उपयोगी जानकारी उसकी आत्मकथा फुतुहत-ए-फ़िरोज़शाही से मिलती है।
फिरोजशाह तुगलक ने राज्य को सुदृढ़ बनाने के कई प्रयास किये, परन्तु वह असफल रहा। वह अपने राज्य में स्थायित्व स्थापित करने में असफल रहा। उसके शासनकाल में भी तुगलक वंश का पतन जारी रहा। उसके पतन का मुख्य कारण कारण उसकी कठोर धार्मिक नीति भी थी। उसे बंगाल, गुजरात और वारंगल में कई विद्रोह का सामना भी करना पड़ा।
फिरोजशाह तुगलक ने अधोसंरचना को बेहतर बनाने का प्रयास किया। उसने अपने शासनकाल में नहरों, विश्राम गृहों, जलाशयों तथा अस्पतालों का निर्माण करवाया। इसके अतिरिक्त उसने दिल्ली के इर्द-गिर्द कई शहरों की स्थापना की। फिरोजशाह तुगलक ने जौनपुर, फिरोजपुर, हिस्सार, फिरोजाबाद और फतेहाबाद जैसे नगरों की स्थापना की।
राजस्व व्यवस्था
फिरोजशाह तुगलक ने अपने राज्य में गैर-मुस्लिमो से जजिया नामक कर वसूल किया। उसने अधिकतर कर शरियत के अनुसार वसूल किये। उसके शासन काल में प्रमुख कर खराज, ख़ुम्स, जजिया और जकात थे। भूमि से प्राप्त होने वाले राजस्व को खराज कहा जाता था। युद्ध में लूटे गए धन को ख़ुम्स कहा जाता था। किसानों से शुर्ब नामक सिंचाई कर वसूला जाता था। उपरोक्त करों के अतिरिक्त कोई अन्य कर अस्तित्व में नहीं थे।
किसानों को कृषि कार्य के लिए तकावी नामक ऋण दिया जाता था, फिरोजशाह तुगलक ने वह ऋण माफ़ कर दिया था। इस दौरान भू-राजस्व कृषि उपज के आधार पर वसूल किया जाता था। सिंचाई के लिए उसने कई नहरों का निर्माण करवाया। इनमे उलूगखानी नहर और रजवाही नहर प्रमुख है। सिंचाई पर भी कर लगाया जाता था। फिरोजशाह तुगलक ने 1200 बाग़ लगवाए थे। फिरोजशाह तुगलक ने शशगानी, ताम्बा और चांदी के सिक्के जारी किये थे। फ़िरोज़शाह तुगलक सैनकों का नकद वेतन की जगह जागीरें वेतन स्वरुप दी। इन जागीरों को ‘वजह’ कहा जाता था।
सैन्य व प्रशासनिक व्यवस्था
फिरोजशाह तुगलक ने अपने शासनकाल में कई राज्यों पर आक्रमण किये। उसने हिमाचल प्रदेश के नगरकोट पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की। फ़िरोज़शाह तुगलक ने ओडिशा में जगन्नाथ मंदिर को नष्ट किया था। इसका बंगाल और सिंध का सैन्य अभियान असफल रहा था।
इस काल में अमीरों और सैनिकों की नियुक्ति वंशानुगत आधार पर की जाती थी। परन्तु कालांतर में इससे सेना में अनुशासनहीनता उत्पन्न होने लगी। फिरोजशाह तुगलक ने 1,80,000 गुलामों को इकठ्ठा करके दीवान-ए-बन्दगान नामक विभाग की स्थापना की थी। उसने गुलामों की एक सेना बनाने का प्रयास भी किया। इससे दासों और अमीरों के बीच में तनाव उत्पन्न हुआ। और सेना के सशक्तिकरण का यह प्रयास असफल रहा।
सांस्कृतिक योगदान
फिरोजशाह तुगलक ने कई सराय, मकबरे व मदरसों की स्थापना की। निर्धन लोगों के उपचार के लिए उसने चिकित्सालय शुरू किये। फिरोजशाह ने हिस्सा, फिरोजाबाद, तथा जौनपुर जैसे नगरों की स्थापना की। उसने टोपरा और मेरठ से अशोक की लाट को दिल्ली में स्थापित करवाया था। उसने निर्धन लोगों की पुत्रियों के विवाह में वित्तीय सहायता के लिए ‘दीवान-ए-खैरात’ विभाग की स्थापना की थी।
फिरोजशाह तुगलक ने अपने शासनकाल में कई साहित्यकारों, लेखकों व विचारकों को संरक्षण प्रदान किया । उसने अपने दरबार में जियाउद्दीन बरनी और शम्स-ऐ-सिराज को संरक्षण प्रदान किया। शम्स-ए-अफीक ने उसनी जीवन कथा तारीख-ए-फिरोजशाही को लिखा। फिरोजशाह तुगलक ने हिमाचल प्रदेश के नगरकोट पर आक्रमण करके विजय प्राप्त की थी। वह नगरकोट से हिन्दू धर्म की संस्कृत पुस्तकों अपने साथ लाया और उनका अनुवाद फारसी में करवाया। फारसी में इन पुस्तकों का अनुवाद ‘दलायल-ए-फ़िरोज़शाही’ के नाम से किया गया था। यह अनुवाद अजीजुद्दीन किरमानी ने किया था।
1388 ईसवी में फिरोजशाह की मृत्यु हुई, उसकी मृत्यु के साथ ही तुगलक वंश का पतन शुरू हुआ। उसकी मृत्यु के बाद साम्राज्य में बड़े पैमाने पर अव्यवस्था फैल गयी। इसका मकबरा दिल्ली में हौज़ खास में स्थित है।
नासिरुद्दीन महमूद (1394-1412 ईसवी)
फिरोजशाह तुगलक की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत में उत्तराधिकार को लेकर संघर्ष आरम्भ हुआ। 1394 ईसवी में नासिरुद्दीन महमूद दिल्ली सल्तनत का शासक बना, वह तुगलक वंश का अंतिम शासक था। इसके काल में दिल्ली सल्तनत का पतन हो चुका था और इसका क्षेत्र बहुत सीमित था। नासिरुद्दीन महमूद के कार्यकाल में तैमूर लंग ने आक्रमण किया था।

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