विजयमंगई मंदिर, गोविंदपुत्तुर, तमिलनाडु
विजयमंगई मंदिर अर्जुन की तपस्या से जुड़ा हुआ शिवस्तलम है। कावेरी नदी के उत्तर में स्थित तेवरा स्टालम्स की श्रृंखला में इसे 47 वां माना जाता है। यह मंदिर कुंभकोणम के पास गोविंदपुत्तुर में स्थित है।
किंवदंतियाँ – गोविंदपुत्तुर नाम एक गाय की पूजा करते हुए शिव के चारों ओर पाया जाता है (प्रवेश द्वार के पास पत्थर के खंभों पर नक्काशीदार)। अर्जुन (विजयन) ने यहां शिव को घोर तपस्या करने के बाद पाशुपतस्त्रम प्राप्त किया, इसलिए इसका नाम विजयमंगई पड़ा। नंदी ने यहां शिव की पूजा की थी।
मंदिर: यहाँ पर दो स्तोत्र हैं। बाहरी प्रकरम में अम्मन मंदिर है। प्राणायामकटा विनायककर भीतर के स्तवन का श्रंगार करते हैं। चोल काल के कई शिलालेख हैं। कोलिदम नदी के दक्षिणी किनारे पर एक और विजमांगई है। महामंडपम में नटराजार, दक्षिणामूर्ति, ब्रह्मा विष्णु, विनायककर, सुब्रमण्यर, शिव और पार्वती और तेवारा मूवर और मणिकक्वाकर की भित्ति चित्र हैं।
त्यौहार: वार्षिक ब्रह्मोत्सव चिट्टिराई के महीने में आता है, जहाँ उत्सव देवताओं को जुलूस में शामिल किया जाता है। यहाँ मनाए जाने वाले अन्य त्यौहारों में मरगाज़ी तिरुवदिराई, नवरात्रि, कार्तिकई दीपम और आदी पूरम हैं।