चार्टर एक्ट, 1793
वर्ष 1793 में कंपनी के वाणिज्यिक विशेषाधिकार एक और बीस साल के लिए बढ़ा दिए गए थे। शक्तियां जिन्हें विशेष रूप से लॉर्ड कार्नवालिस और भविष्य के सभी गवर्नर जनरल और गवर्नरों के परिषद को 1793 के चार्टर अधिनियम द्वारा विस्तारित किया गया था। बॉम्बे और मद्रास के राष्ट्रपति पद पर गवर्नर-जनरलों के अधिकार क्षेत्र को अधिनियम द्वारा बल दिया गया था। चार्टर अधिनियम के अनुसार बंगाल प्रांत के गवर्नर जनरल की अनुपस्थिति के दौरान उन्हें अपने स्थान पर कार्य करने के लिए अपने परिषद के असैनिक सदस्यों से उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त करना था। इसके अलावा इस अधिनियम की परिकल्पना की गई थी कि जब वह बॉम्बे या मद्रास गए तो उन्हें स्थानीय राज्यपालों को प्रशासन का प्रमुख बनाना था। कमांडर-इन-चीफ गवर्नर जनरल के काउंसिल के सदस्य नहीं थे। गृह सरकार के बारे में बोर्ड नियंत्रण के पहले नामित आयुक्त इसके अध्यक्ष होने थे। दो जूनियर सदस्यों को अब प्रिवी काउंसिल का सदस्य होने की आवश्यकता नहीं है। 1793 के चार्टर एक्ट द्वारा सभी सदस्यों को भविष्य में सरकारी खजाने से नहीं बल्कि भारतीयों के राजस्व से बाहर का वेतन दिया जाना था। 1793 के चार्टर एक्ट द्वारा रखी गई यह प्रथा 1919 तक जारी रही।