शाहजहाँ, मुगल शासक

जहाँगीर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र शाहजहाँ मुग़ल शासक बना। वर्ष 1627 ईसवी में शाहजहाँ का राज्याभिषेक हुआ। शाहजहाँ ने अपने शासनकाल में कई महत्वपूर्ण भवनों व इमारतों का निर्माण करवाया। शाहजहाँ ने प्रसिद्ध ऐतिहासिक इमारत ताजमहल का निर्माण करवाया था। शाहजहाँ के कार्यकाल में 1630-32 ईसवी के दौरान गुजरात में भीषण अकाल पड़ा था। शाहजहाँ का शासनकाल काफी हद तक शांतिपूर्ण था। शाहजहाँ ने वर्ष 1648 ईसवी में राजधानी को दिल्ली स्थानांतरित किया था। मोहम्मद सैय्यद ने शाहजहाँ को कोहिनूर हीरा उपहार में दिया था।
वर्ष 1612 ईसवी में शाहजहाँ का विवाह अर्जुमंद बानो बेगम (मुमताज़ महल) से हुआ था। शाहजहाँ ने 1620 ईसवी में काँगड़ा पर आधिपत्य स्थापित किया था। दक्षिण भारत के अभियानों में भी उसे काफी सफलता मिली। इस उपलब्धियों के कारण वह जहाँगीर का उत्तराधिकारी बना।
साम्राज्य का विस्तार
शाहजहाँ ने वर्ष 1633 ईसवी में अहमदनगर पर आक्रमण किया था, इस अभियान में वह सफल रहा। उसने अहमद नगर पर विजय प्राप्त करके उसे अपने साम्राज्य में शामिल किया। उसने अहमदनगर के शासक हुसैनशाह को ग्वालियर में कैद किया था। मुगलों ने 1636 ईसवी में गोलकुंडा पर दबाव डाल कर संधि करने के लिए विवश किया था। इस संधि के बाद गोलकुंडा के सिक्कों पर शाहजहाँ का नाम अंकित किया जाने लगा। इसके साथ-साथ खुतबे से ईरान के शाह स्थान पर शाहजहाँ का नाम उपयोग किया जाने लगा। वर्ष 1636 ईसवी में मुगलों ने बीजापुर पर आक्रमण किया था। इस आक्रमण के बाद बीजापुर के शासक 20 लाख रुपये प्रतिवर्ष देने के लिए राज़ी हो गए।
शाहजहाँ और भी कई छोटे बड़े राज्यों को अपने नियंत्रण में किया। उसने छोटा तिब्बत, उज्जैनिया, रतनपुर, पलामाऊ, मालवा, गढ़वाल तथा कुमाऊँ जैसे क्षेत्रों को अपने अधीन किया।
मध्य एशिया व अफ़ग़ानिस्तान में सैन्य अभियान
शाहजहाँ के शासनकाल में मुगलों ने मध्य एशिया में भी सैन्य अभियान भेजा। वर्ष 1646 ईसवी में शाहजहाँ ने बदख्शां के लिए अभियान भेजा था, परन्तु यह अभियान असफल रहा था। औरंगजेब को वर्ष 1647 में वहां पर सफलता मिली थी। वहां की जलवायु काफी प्रतिकूल थी तथा वहां की अर्थव्यवस्था भी काफी निर्धन थी। अतः मुगलों को इस अभियान से कोई विशेष लाभ नहीं हुआ।
1622 ईसवी में फारस ने कंधार पर अधिकार कर लिया था। उस समय जहाँगीर मुग़ल शासक था। वर्ष 1628 ईसवी में फारसी किलेदार अलीमर्दान खां ने किले को मुगलों को सौंप दिया था। 1648-49 के दौरान यह किला मुगलों के नियंत्रण से बाहर हो गया था, उसके बाद मुग़ल इस किले को कभी भी अपने अधीन नहीं ला सके।
शाहजहाँ के शासनकाल में विद्रोह
शाहजहाँ को अपने शुरूआती कार्यकाल में ही विद्रोह का सामना करना पड़ा। 1628-31 ईसवी के दौरान खान-ए-जहाँ लोदी ने शाहजहाँ के खिलाफ विद्रोह किया। इस विद्रोह को महावत खां ने कुचल किया। उसकी इस सफलता के लिए उसे दक्षिण का सूबेदार बना दिया गया। 1628 ईसवी में बुंदेलखंड में जुझार सिंह और विक्रमजीत ने विद्रोह किया था, 1635 इन दोनों की हत्या कर दी गयी थी। इनकी हत्या के बाद चम्पतराय ने विद्रोह जारी रखा। 1642 ईसवी में चम्पतराय ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली।
शाहजहाँ ने छठवें सिख गुरु हरगोविंद के विरुद्ध भी कई अभियान भेजे, परन्तु वे अभियान असफल हुए। गुरु हरगोविंद कश्मीर की पहाड़ियों में किरतपुर नामक स्थान पर निवास करने लगे। किरतपुर में ही उनकी मृत्यु हो गयी थी। उन्होंने व्यास नदी के तट पर गोविंदपुर नगर की स्थापना की थी।
शाहजहाँ की धार्मिक नीति
शाहजहाँ ने धार्मिक कट्टरता की नीति को अपनाया। शाहजहाँ ने अपने राज्य को इस्लामिक राज्य घोषित किया था, वह शरियत का सम्मान करता था। उसने इलाही संवत के स्थान पर हिजरी सम्वंत का पालन किया था। उसने हिन्दुओं की तीर्थ यात्रा पर कर लगाया था। उसने मंदिरों के निर्माण पर रोक लगायी थी। शाहजहाँ ने कई निर्माणाधीन मंदिरों को नष्ट किया था। उसने आगरा में निर्मित गिरिजाघरों को भी नष्ट करवा दिया था।

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