भारतीय लोक संगीत
भारत में लोक संगीत राज्यों, जातियों तथा जनजातियों के हिसाब से अलग- अलग हैं। भारत के अलग- अलग क्षेत्र में अलग-अलग लोक गीत विकसित हुए हैं। भारत में लोक-संगीत बेहद प्राचीन हैं।
भारत के प्रमुख लोक संगीत इस प्रकार हैं-
1. मदिगा दप्पू- आंध्र प्रदेश
2.माला जमदिका- आंध्र प्रदेश
3.बिहूगीत- असम
4.टोकरीगीत- असम
5.कामरूप लोकगीत- असम
6.गोलपरिया गीत- असम
7.पंडवानी- छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड
8.बहुला- पश्चिम बंगाल
9.बटियाली- पश्चिम बंगाल
10.गरबा- गुजरात
11.दोहा- गुजरात
12.भावगीते- कर्नाटक, महाराष्ट्र
13.लावणी- महाराष्ट्र
14.पोवाडा- महाराष्ट्र
15.गोंधार- महाराष्ट्र
16. अभंग- महाराष्ट्र
17.ओड़िसी- ओड़िशा
18.संभलपुरी- ओड़िशा
19.महिया- पंजाब
प्रमुख लोक-गीत
लावणी –लावणी महाराष्ट्र का एक प्रमुख लोक संगीत है। यह संगीत उपकरण ढोलकी पर गाया जाता है। यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र में प्रसिद्ध है, और कर्नाटक तथा मध्य प्रदेश में भी लावणी का प्रचलन है। प्राचीन काल में इसका प्रयोग थके हुए सैनिकों की थकान दूर करने और उनका मनोरंजन करने के लिए भी किया जाता था।
पंडवानी- पंडवानी राजस्थान का एक लोक संगीत है। यह छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और झारखंड में प्रसिद्ध है। यह पांडवों की कहानी पर आधारित गीत हैं। इसकी शैली वेदमती और कापालिक हैं।
बटियाली- इसकी उत्पत्ति वर्तमान बांग्लादेश के भाटी इलाके में हुई। यह पश्चिम बंगाल में प्रसिद्ध है।
अभंग- विट्ठल या विठोबा की स्तुति में अभंग नमक छंद गाये जाते हैं। इसका शुरुआती वर्णन 13वीं सदी में मिलता है। यह महाराष्ट्र में प्रसिद्ध है।
बिहूगीत- बिहूगीत असम का लोकगीत है जो बिहू त्यौहार के अवसर पर गया जाता है।
संभलपुरी- यह उड़ीसा का एक संगीत है। यह मुख्य रूप से पश्चिम उड़ीसा में स्थित है।
पोवाडा- पोवाडा महाराष्ट्र का एक लोक संगीत है। यह वीर रस पर आधारित लोक संगीत है। इसमें मुख्य रूप से शिवाजी के युद्ध वीरता का गायन है। इसका गायन करने वालों को मराठी भाषा में शाहीर कहा जाता है।
गरबा- गरबा गुजरात का अन्य प्रसिद्ध लोकगीत और नृत्य है। इसे महिलाओं द्वारा अनेक त्यौहारों विशेष रूप से नवरात्रि के मौके पर किया जाता है।
कामरूप लोकगीत- यह असम का लोकगीत है। यह असम के कामरूप जिले में विकसित हुई।
भजन और कीर्तन: एक भजन या कीर्तन एक हिंदू भक्ति गीत है, जो अक्सर प्राचीन मूल का है। कीर्तन वेद की परंपरा में गहराई से निहित हैं। भजनों में अक्सर दिव्य भाषा में सरल गीत होते हैं। कई भजन चुने हुए देवता के कई नाम और पहलुओं को दर्शाते हैं, विशेष रूप से हिंदू सहस्रनामों के मामले में, जो देवत्व के 1008 नामों को सूचीबद्ध करते हैं। परंपरागत रूप से, संगीत भारतीय शास्त्रीय संगीत पर आधारित है, जो वीणा, सारंगी, वेणु (बांसुरी), मृदंगा (या तबला) (पारंपरिक वाद्य यंत्र) पर बजाए जाने वाले रागों और ताल (तालबद्ध ताल के पैटर्न) पर आधारित है। सिखों के धर्मग्रंथ में 31 राग और 17 ताल हैं, जो कीर्तन संगीत रचनाओं का आधार हैं। भजन-गायन की विभिन्न परंपराएं, जैसे कि निर्गुणी, गोरखनाथी, वल्लभपन्थी, अष्टछाप और मधुरा-भक्ति, युगों से चली आ रही हैं। प्रत्येक संप्रदाय में भजन और गायन के तरीकों के अपने-अपने सेट हैं। दक्षिण भारत में भजन का पारंपरिक रूप संप्रदाय भजनों के रूप में जाना जाता है।
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