राजपूत मूर्तिकला की विशेषताएँ

राजपूत मूर्तियां और कला को इसके शासकों से बहुत संरक्षण मिला। परिणामस्वरूप राजपूतों के अधीन कला और वास्तुकला बहुत पनपी। हालांकि शुरू में राजपूत मूर्तियों की अधिकांश विशेषताएं मुगलों से प्रेरित थीं। बाद के चरण में राजपूत मूर्तियां और वास्तुकला निर्माण के लिए एक नई शैली विकसित हुई। राजपूत शासक विपुल निर्माता थे। इसलिए उनके

पश्चिमी चालुक्य मूर्तिकला

पश्चिमी चालुक्य मूर्तियां द्रविड़ वास्तुकला का उदाहरण हैं। इन मूर्तियों ने अपने अलंकरण में अपने पूर्ववर्तियों से अलग पहचान बनाई। 11 वीं और 12 वीं शताब्दी के दौरान यह शैली विकसित हुई और इसे कल्याणी वास्तुकला के रूप में भी जाना जाता है। पश्चिमी चालुक्य मूर्तियों की मुख्य विशेषताओं में जटिल और विस्तृत पत्थर के

NCDC ने Deutsche Bank से 600 करोड़ रुपये का ऋण प्राप्त किया

राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (National Cooperative Development Corporation – NCDC) ने देश में सहकारी समितियों को ऋण देने के लिए जर्मनी के सबसे बड़े बैंक ड्यूश बैंक (Deutsche Bank) से 600 करोड़ रुपये का ऋण प्राप्त किया है। मुख्य बिंदु कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की मौजूदगी में NCDC और जर्मन बैंक के बीच इस

चोल मूर्तिकला

उल्लेखनीय चोल मूर्तियां दक्षिण भारत में मंदिर की दीवारों को सुशोभित करती हैं। इनमें से अधिकांश मंदिर या तो भगवान शिव या भगवान विष्णु को समर्पित थे। इनको मंदिर वास्तु शास्त्र के अनुसार बनाया गया था। मंदिर की मूर्तियों के अलावा कांस्य की मूर्तियां भी चोल राजाओं के अधीन थीं। चोल मूर्तिकला का सबसे अच्छा

चालुक्य काल की मूर्तिकला

चालुक्य मूर्तियां प्राचीन भारत में कला और वास्तुकला के पूरी तरह से अलग स्कूल के रूप में विकसित हुईं। चालुक्य मूर्तियों की सबसे स्थायी विरासत इसकी वास्तुकला और मूर्तिकला है। मुख्य रूप से चालुक्य मूर्तियों को बादामी चालुक्य मूर्तिकला, पश्चिमी चालुक्य (कल्याणी) मूर्तिकला और वेंगी मूर्तिकला में वर्गीकृत किया जा सकता है। इन्हें भारत के