कदव वंश

तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दी के दौरान कदव वंश के शासकों ने पल्लवों के बाद तमिलनाडू में शासन शुरू किया। इस राजवंश के उल्लेखनीय शासकों कोपरपंचिंग I (शासनकाल c.1216 – 1242 CE), और उनके बेटे और वारिस कोपरपंचिंग II (c.1243 – 1279 CE) हैं। पारस्परिक रूप से उन्होंने अपने राज्य का विस्तार किया और चोल वंश

पल्लव- चालुक्य युद्ध

500 ईस्वी की समाप्ति पर सिम्हा विष्णु ने पल्लव वंश की स्थापना की। उन्होने कई युद्ध लड़े और अपने राज्य का विस्तार किया। उनके निधन के बाद उनके बेटे महेंद्रवर्मन ने शासन शुरू किया। वो एक विद्वान व्यक्ति थे और महाबलीपुरम में गुफा मंदिर का निर्माण कराया। सबसे प्रमुख प्रारंभिक चालुक्य राजा पुलकेसी द्वितीय ने

पल्लव वंश

संस्कृत में पल्लव शब्द शाखा या टहनी शब्द तमिल भाषा में टोंडायार के रूप में दिया जाता है। कई स्थानों पर पल्लव राजाओं को टोंडामन या टोंडाइयार्कन कहा जाता है। तमिल में टोंडन शब्द का अर्थ है, दास, नौकर, अनुयायी या सहायक और या तो अधीनता की स्थिति का सूचक हो सकता है। पल्लव पहले

मैडम भीकाजी कामा

मैडम भीकाजी कामा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सबसे महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानी और एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उन्होने भारत की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। मैडम भीकाजी कामा का प्रारंभिक जीवन 24 सितंबर, 1861 को मैडम भीकाजी कामा का जन्म हुआ। इन्हें बचपन में भिकाई सोरब पटेल के नाम से जाना

संथाल विद्रोह

संथाल विद्रोह संथाल लोगों द्वारा एक देशी विद्रोह था, जो ब्रिटिश साम्राज्य और जमींदारी प्रणाली दोनों के खिलाफ लड़ा गया था। विद्रोह 30 जून 1855 को शुरू हुआ था। विद्रोह का नेतृत्व चार मुर्मू भाइयों सिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव ने किया था। विद्रोह उस जगह पर हुआ था, जो वर्तमान समय में झारखंड राज्य