इसरो को सौंपा गया C32 LH2 प्रोपेलेंट टैंक, जानिए यह इसरो के किस काम आएगा?

C32 LH2 प्रोपेलेंट टैंक में सुर्ख़ियों में था। दरअसल, C32 LH2, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा बनाया गया सबसे बड़ा क्रायोजेनिक प्रोपेलेंट टैंक है।  हाल ही में यह टैंक इसरो को डिलीवर किया गया। इसे इसरो के जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क III (GSLV Mk III) की पेलोड क्षमता को 4 टन से बढ़ाकर 6 टन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

C32 LH2 टैंक

यह एल्यूमीनियम मिश्र धातु से बना एक क्रायोजेनिक प्रोपेलेंट टैंक है। इस टैंक में 5,755 किलोग्राम प्रोपेलेंट ईंधन लोड हो सकता है।

वर्तमान में, भारत भारी संचार उपग्रहों (5 से 6 टन के) को लॉन्च करने के लिए फ्रेंच गयाना पर निर्भर है। C32 LH2 भर उपग्रहों को लांच के लिए दूसरे देशों पर भारत की निर्भरता को समाप्त कर देगा।

क्रायोजेनिक ईंधन क्या हैं?

क्रायोजेनिक का मतलब है कम तापमान। क्रायोजेनिक ईंधन व ईंधन हैं जिसे बेहद कम भंडारण तापमान की आवश्यकता होती है। इस प्रकार के ईंधन का उपयोग आमतौर पर अंतरिक्ष में किया जाता है क्योंकि तापमान कम होता है। इस प्रकार, अंतरिक्ष का वातावरण दहन का समर्थन नहीं कर सकता है। और इसलिए, अत्यधिक कम तापमान वाले ईंधन की आवश्यकता होती है। आमतौर पर क्रायोजेनिक इंजन, ईंधन के रूप में लिक्विड हाइड्रोजन और ऑक्सीडाईजर के रूप में लिक्विड ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि ऑक्सीजन को -183 डिग्री सेल्सियस से नीचे तरल अवस्था में रखा जा सकता है। दूसरी ओर, तरल हाइड्रोजन को -253 डिग्री सेल्सियस पर रखा जाता है। तरल ऑक्सीजन अत्यधिक प्रतिक्रियाशील है और भारी भार उठाने के लिए एक प्रणोदक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

भारत ने क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी कैसे प्राप्त की?

भारत ने रूस से क्रायोजेनिक तकनीक प्राप्त की। 1991 में, सोवियत संघ ने इसरो को प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करने पर सहमति व्यक्त की थी अमेरिका, जापान, यूरोप और चीन जैसे अन्य देश भारत के साथ प्रौद्योगिकी साझा करने में संकोच कर रहे थे।

क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी का महत्व

यह प्रौद्योगिकी अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रगति में मदद करती है। क्रायोजेनिक ईंधन अत्यधिक किफायती होते हैं क्योंकि वे वजन में हल्के होते हैं। क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी स्वच्छ है क्योंकि उत्सर्जित किए गए उत्पादों में केवल ऑक्सीजन और हाइड्रोजन होते हैं। यह तकनीक भारत को अंतरिक्ष शक्ति बनने में मदद करेगी।

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